(देहरादून) पितृपक्ष 14 सितंबर से शुरू हो रहा है और 28 सितंबर को सर्व पितृ अमावस्या तक रहेगा। आमतौर पर 16 दिनों का होने वाला श्राद्ध पक्ष इस बार 15 दिनों का होगा। 14 सितंबर को स्नानदान की पूर्णिमा व प्रतिपदा यानी प्रथम पार्वण श्राद्ध होगा। 15 सितंबर को मध्याह्न के बाद द्वितीय का श्राद्ध होगा। अगले दिन भी द्वितीया का ही श्राद्ध होगा, जबकि तृतीया का श्राद्ध 17 सितंबर को होगा। पर्व निर्णय सभा के संरक्षक डॉ. भुवन चंद्र त्रिपाठी के मुताबिक, पार्वण श्राद्ध मध्याह्न काल युक्त तिथियों में किया जाने का विधान है। ब्रह्मपुराण के अनुसार श्राद्ध पक्ष में पितृ अपने परिजनों के घर वायु रूप में आते हैं।
जरूरतमंद को कराएं भोजन
पितृ पक्ष में तर्पण, श्राद्ध व ब्रह्मभोज, गोग्रास आदि का विशेष महत्व है। श्री महादेव गिरी संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. नवीन चंद्र जोशी कहते हैं कि श्राद्ध पक्ष में व्यक्ति को अपनी सामथ्र्य अनुसार जरूरतमंद को भोजन, दान आदि कराना चाहिए। जिस पूर्वज की, पितृ या परिवार के मृत सदस्य के निधन की तिथि याद हो तो पितृपक्ष में पडऩे वाली उक्त तिथि को उसका श्राद्ध करना चाहिए। तिथि ज्ञात न होने पर सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है।
यह रहेगी श्राद्ध की तिथि
- 14 सितंबर प्रतिपदा
- 15 सितंबर द्वितीया
- 16 सितंबर द्वितीया
- 17 सितंबर तृतीया
- 18 सितंबर चतुर्थी
- 19 सितंबर पंचमी
- 20 सितंबर षष्ठी
- 21 सितंबर सप्तमी
- 22 सितंबर अष्टमी
- 23 सितंबर नवमी
- 24 सितंबर दशमी
- 25 सितंबर एकादशी, द्वादशी
- 26 सितंबर त्रयोदशी
- 27 सितंबर चतुर्दशी
- 28 सितंबर पितृ विसर्जन अमावस्या
पितृपक्ष में किस तरह कार्यों का पालन करें?
पितृपक्ष में हम अपने पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित करते हैं।
यह जल दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके दोपहर के समय दिया जाता है
जल में काला तिल मिलाया जाता है और हाथ में कुश रक्खा जाता है
जिस दिन पूर्वज की देहांत की तिथि होती है, उस दिन अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है
उसी दिन किसी निर्धन को भोजन भी कराया जाता है
इसके बाद पितृपक्ष के कार्य समाप्त हो जाते हैं
कौन पितरों का श्राद्ध कर सकता है
- घर का वरिष्ठ पुरुष सदस्य नित्य तर्पण कर सकता है।
- उसके अभाव में घर को कोई भी पुरुष सदस्य कर सकता है।
- पौत्र और नाती को भी तर्पण और श्राद्ध का अधिकार होता है।
- वर्तमान में स्त्रियां भी तर्पण और श्राद्ध कर सकती हैं।
- सिर्फ इतना ध्यान रक्खें कि पितृपक्ष की सावधानियों का पालन करें।
किन चीजों का करें परहेज
- इस अवधि में दोनों वेला स्नान करके पितरों को याद करना चाहिए।
- कुतप वेला में पितरों को तर्पण दें. इसी वेला में तर्पण का विशेष महत्व है।
- तर्पण में कुश और काले तिल का विशेष महत्व है. इनके साथ तर्पण करना अदभुत परिणाम देता है।
- जो कोई भी पितृपक्ष का पालन करता है उसे इस अवधि में केवल एक वेला सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए।
- पितृपक्ष में सात्विक आहार खाएं. प्याज लहसुन, मांस मदिरा से परहेज करें।
- जहां तक संभव हो दूध का प्रयोग कम से कम करें।
- पितरों को हल्की सुगंध वाले सफेद पुष्प अर्पित करने चाहिए , तीखी सुगंध वाले फूल वर्जित हैं।
- दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों को तर्पण और पिंड दान करना चाहिए।
- पितृपक्ष में नित्य भगवदगीता का पाठ करें।
- कर्ज लेकर या दबाव में कभी भी श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए।