गोपेश्वर, जहां एक ओर पहाड़ का नौजवान रोजगार की तलाश में यहां से पलायन कर रहा है वहीं उम्र के जिस पड़ाव पर अमूमन लोग घरों की चारदीवारी तक सीमित होकर रह जाते हैं। ऐसे में सीमांत जनपद चमोली की बंड पट्टी के किरूली गांव निवासी 63 वर्षीय दरमानी लाल हस्तशिल्प कला को नयी पहचान दिलाने की मुहिम में जुटे हुए हैं।
दरमानी लाल विगत 40 सालों से रिंगाल के विभिन्न उत्पादों को आकार दे रहे हैं। रिंगाल के बने कलमदान, लैंप सेड, चाय ट्रे, नमकीन ट्रे, डस्टबिन, फूलदान, टोकरी, टोपी समेत विभिन्न उत्पादों को आकार दिया है। इनके बनाए गए उत्पादों का हर कोई मुरीद है। कई जगह ये रिंगाल हस्तशिल्प के मास्टर ट्रेनर के रूप में लोगों को ट्रेनिंग दे चुके हैं।
एक आंकडे़ के अनुसार उत्तराखंड में वर्तमान में करीब 50 हजार से अधिक हस्तशिल्पि हैं जो अपने हुनर से हस्तशिल्प कला को संजो कर रखे हुए हैं। ये हस्तशिल्पि रिंगाल, बांस, नेटल फाइबर, ऐपण, काष्ठ शिल्प और लकड़ी पर बेहतरीन कलाकरी के जरिए उत्पाद तैयार करते आ रहे हैं। लेकिन बाजार में मांग की कमी, ज्यादा समय और कम मेहनताना मिलने की वजह से युवा पीढ़ी अपने पुश्तैनी व्यवसाय को आजीविका का साधन बनाने में दिलचस्पी कम ले रही है। परिणामस्वरूप आज हस्तशिल्प कला दम तोड़ती और हांफती नजर आ रही है।
चमोली जनपद के कुलिंग, छिमटा, पज्याणा, पिंडवाली, डांडा, मज्याणी, बूंगा, सुतोल, कनोल, मसोली, टंगणी, बेमरू, किरूली गांव हस्तशिल्पियों की खान है। इन गांवों के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन हस्तशिल्प है। किरूली गांव के 63 वर्षीय दरमानी लाल विगत 40 सालों से रिंगाल का कार्य करते आ रहे हैं। बकौल दरमानी लाल जी रिंगाल की टोकरी और अन्य उत्पादों की जगह अब प्लास्टिक नें ले ली है। पहाड़ों में पलायन की वजह और गांव में खेती की तरफ लोगों का रूझान खत्म हो गया है जिससे रिंगाल के उत्पादों की मांग घट गयी है। परिणामस्वरूप आज हस्तशिल्प व्यवसाय पर भी संकट गहरा गया है। इस कारण अब हस्तशिल्प कला से परिवार का भरण पोषण करना बेहद कठिन हो गया है। लोगों को मजबूरन हस्तशिल्प की जगह रोजगार के अन्य विकल्प ढूंढने पड़ रहे हैं।
अपने पिता दरमानी लाल के साथ रिंगाल के उत्पादों को तैयार कर रहे राजेन्द्र कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में रिंगाल के उत्पादों की भारी मांग है लेकिन हस्तशिल्पियों की तस्वीर नहीं बदल पाई है। जबकि हस्तशिल्प रोजगार का बड़ा साधन साबित हो सकता है। यदि हस्तशिल्प उद्योग और हस्तशिल्पियों को बढ़ावा और प्रोत्साहन मिले तो पहाड़ की तस्वीर बदल सकती है। बाजार की मांग के अनुरूप हमें नये लुक और डिजाइन पर फोकस करना होगा। पीपलकोटी की आगाज फेडरेशन जरूर इस दिशा में हस्तशिल्पियो को समय समय पर प्रशिक्षित करती रहती है।