मंगलवार को देहरादून स्थित एक संगठन ने दावा किया है कि गुणवत्ता विश्लेषण के लिए इकट्ठा किए गए 90 प्रतिशत से ज्यादा पानी के नमूने जिनमें वीआईपी क्षेत्रों से लिए गए सैंपल भी है वह दूषित पाए गए हैं।
गैर सरकारी संगठन की रिपोर्ट शहर के सभी 60 नगरपालिका वार्डों से एकत्र किए गए 76 नमूनों पर आधारित है।इसमें झुग्गी,क्लस्टरों और कम से कम चार वीआईपी क्षेत्रों को भी शामिल किया गया हैं, जिनमें एक क्षेत्र में राज्य मंत्री का आवास है, एक विधायक आवास वाला क्षेत्र, एक जिला मजिस्ट्रेट का क्षेत्र और एक जिला न्यायाधीश का क्षेत्र भी शामिल हैं।
लेकिन जल संस्थान, सरकार की जल आपूर्ति इकाई, ने रिपोर्ट के निष्कर्षों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।”जल संस्थान के मुख्य महाप्रबंधक एस के गुप्ता ने कहा कि “हम न तो रिपोर्ट के दावों को पहचानते हैं और न ही प्रयोगशाला जहां परीक्षण किया गया था। यह (रिपोर्ट) केवल भ्रामक नहीं है बल्कि चीजों को सनसनीखेज बनाने का भी प्रयास है। हम जो पानी उपलब्ध कराते हैं वह बिल्कुल साफ और स्वच्छ है।
गैर-सरकारी संगठन ‘सोसाइटी ऑफ पोल्यूशन एंड एनवायरनमेंट कंज़र्वेशन साइंटिस्ट्स’ (एसपीईसीएस) द्वारा जारी किए गए देहरादून की जल रिपोर्ट गुणवत्ता स्थिति के अनुसार अधिकांश नमूने में अतिरिक्त क्लोरीन या फिकल कॉलिफॉर्म (बैक्टीरिया जो जल प्रदूषण के संकेत देता है) पाया गया है। दो नमूनों में तेल और ग्रीस के निशान भी पाए गए हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां अतिरिक्त क्लोरीन त्वचा और बालों लिए हानिकारक माना जाता है और इसके प्रयोग से अल्सर का डर भी होता है।पीने के पानी में फीकल कोलीफाॅर पाए जाने से फेफड़े के रोग के साथ अन्य रोगों जैसे डायरिया, दस्त और गैस्ट्रोएन्ट्रोएनटाइटिस जैसे बीमारियां पैदा हो सकती है। । रिपोर्ट के अनुसार, एसपीईसीएस द्वारा अध्ययन किए गए कुल 76 नमूनों में से 74 नमूने को पीने के लिए सही नहीं पाया गया है और इनमें विभिन्न संदूषण भी मौजूद हैं।
अवशिष्ट क्लोरीन 24 स्थानों पर पाया गया था, जिसमें से 22 नमूनों में ‘सुपर (या उच्च) क्लोरिनेशन’ स्तर बताए गए थे जो खतरनाक माना जाता है। अवशिष्ट क्लोरीन के लिए मानक मूल्य 0.2 एमजी/लीटर है, लेकिन यह रीटा मंडी, राजपुर रोड और सय्यद मोहल्ला में 1 एमजी/लीटर के बराबर है।
कुल कॉलीफॉर्म – जिनकी मानक मूल्य पीने योग्य पानी में 10 एमपीएन/100 एमएल से अधिक नहीं होना चाहिए – उनको 39 नमूनों में पाया गया। उच्चतम जीएमएस रोड (68 एमपीएन/100 एमएल) में था। इसी तरह, पीले रंग का पानी – जो पीने योग्य पानी होना नहीं चाहिए – शिलाब बाग में सबसे अधिक 32 एमपीएन/100 मिलीलीटर के साथ, 39 नमूनों में मौजूद था।
वहीं एसपीईसीएस के सेक्रेटरी बृज मोहन शर्मा का कहना है कि हमारा एनजीओ पिछले 18 सालों से देहरादून के पानी की जांच कर रहा है।पिछले सालों में पानी की गुणवत्ता खराब हुई है इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन परेशानी की बात यह है कि इसपर जल संस्थान कोई ठास कदम उठाने को तैयार नहीं है।बृज मोहन शर्मा ने कहा कि अगर जल संस्थान को लगता है कि पानी साफ और स्वच्छ है तो जल संस्थान और हर डिर्पाटमेंट में फिल्टर लगाने का क्या मतलब है।शर्मा ने कहा कि हम पिछले 18 साल से बरसात के मौसम में अपनी रिपोर्ट निकालते है और आज तक जल संस्थान की तरफ से कभी भी दोबारा जांच नहीं कि गई है।शहर में बढ़ते डायरिया,पेट की बीमारियों का कारण भी प्रदूषित पानी ही है।
अधिकारियों को उचित कार्रवाई करने के लिए आग्रह करते हुए शर्मा ने कहा कि उप-मानक जल आपूर्ति में लघु और दीर्घकालिक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव दोनों हैं। शर्मा ने दावा किया कि “इस वर्ष, हमने 41% से अधिक दून के निवासियों को ऐसा पानी प्राप्त करते देखा है जो राष्ट्रीय जल गुणवत्ता मानकों से नीचे स्तर पर है”, उन्होंने दावा किया कि यह “पानी की आपूर्ति प्रणाली में लीकेज” और पानी की आपूर्ति के साथ गंदे पानी मिलावट भी इसका एक बड़ कारण हो सकता है।