हरिद्वार। हरिद्वार में कल-कल निनाद कर बहती गंगा सैकड़ों लोगों के लिए एक जीवन रेखा की तरह काम करती है लेकिन यही जीवन रेखा सूखने के बाद सोना उगलने लगती है। अपने वार्षिक क्लोजर के दौरान गंगा एक तरह से सूखने पर सोना उगलने वाली खदान का रुप धारण कर लेती है। शायद यही वजह है कि इस दौरान गंगा में श्रद्वालु भले ही कम दिखे लेकिन गंगा में सोना, चांदी व पैसे ढूंढने वाले हजारों की संख्या में नजर आ जायेंगे। गंगा बंदी का सालभर इन्तजार करने वाले लोग गंगा बंदी के पहले दिन से ही गंगा से गंगा बंदी खुलने तक दिन रात सूखी गंगा से पैसे, सोना, चांदी की तलाश करते हैं। हरिद्वार में आजकल चल रहे गंगा क्लोजर से श्रद्धालुओं को धार्मिक दृष्टि से ठेस जरुर पहुंचती है लेकिन इस दौरान कुछ लोग धार्मिकता से अलग सूखी गंगा को एक सोना उगलने वाली खदान मानते है और दिन-रात कुछ लोग पूरे साल इस गंगा बंदी इन्तजार करते हैं। गंगा बंदी के पहले दिन से गंगा खुलने तक दिन गंगा ही खोजते हैं। इन लोगों को तलाश गंगा में डाले गए भक्तों द्वारा सिक्कों और अन्य सामान की होती है। जिसमें सोना, चांदी और हीरे व जेवर तक लोग पा जाते हैं। ऐसे सैकड़ों परिवार हैं जो गंगा में डाले गए कीमती सामान और सिक्कों को निकालकर अपना व अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं। कई बार इन लोगों को इसी गंगा से बहुत कीमती सोना या हीरा तक मिल जाता है जो इन्हें न केवल पूरे साल का खर्चा दे जाता है अपितु इनकी आर्थिक स्थिति को भी सुधार देता है। बड़े तो बड़े यहां छोटे बच्चे भी इस गंगा बंदी के दौरान कीमती सामान और सिक्के तलाशा करते हैं। इसी काम से ही उनका परिवार चल रहा है। भाग्य अच्छा हो तो सोना हाथ लग जाता है, नहीं तो सिक्कों से ही काम चलाना पड़ता है।