घोटालों का बन रहा रिकार्ड एनएच से बड़ा चावल घोटाला

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रुद्रपुर, लगता है उत्तराखण्ड मे घोटालों का एम्पायर खडा किया जा रहा हो, एक के बाद एक घोटाला, और वो भी पिछले घोटालों से और भी बडा। एेसा लगता है जैसे घोटालों की आढ में सरकारी मशीनरी पुरी तरह से लिप्त है, एनएच 74 के बाद बड़ा चावल घोटाला सामने आ गया है। करोड़ों के चावल घोटाले में शामिल सभी लोगों तक पहुंचने के लिए विस्तृत जांच हो सकती है। हालांकि एसआईटी ने प्रारंभिक जांच में ही कई सौ करोड़ का घपला पकड़ लिया है।

धान खरीद से लेकर ट्रांसपोर्ट व चावल की आपूर्ति तक हर जगह घपला ही घपला निकला है। सेवा विस्तार पर चल रहे आरएफसी की बर्खास्तगी के बाद अभी अन्य बड़े अफसरों पर भी गाज गिरेगी, लेकिन इस मामले में एफआईआर से पहले विस्तृत जांच भी होने के आसार हैं, ताकि सभी दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो सके। सरकार के कड़े रुख से भ्रष्टाचार में शामिल अधिकारियों एवं कर्मचारियों में हड़कंप मच गया है।

मुख्यमंत्री के निर्देश पर अपर जिलाधिकारी नजूल जगदीश कांडपाल, एएसपी देवेंद्र पिंचा, काशीपुर के ज्वाइंट मजिस्ट्रेट विनीत तोमर व कलक्ट्रेट प्रभारी युक्ता मिश्रा की टीम ने खाद्यान्न घोटाले की जांच की। जांच में पाया गया कि राज्य खाद्य सुरक्षा योजना में तीन लाख सात हजार छह सौ बानवे क्विंटल चावल 2,310/- रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीदा गया। जिसमें दो साल में 71 करोड़ सात लाख 68 हजार रुपये का घोटाला होने की चर्चा है। तीन लाख सात हजार छह सौ बानवे क्विंटल चावल के वितरण में ट्रांसपोर्टेशन शुल्क यदि 50 रुपये क्विंटल भी माना जाए तो इसमें डेढ़ करोड़ का गोलमाल सामने आ सकता है। बोरों की खरीद में भी 3.69 करोड़ रुपये प्रति वर्ष सरकार को चूना लगाने की बात सामने आ रही है।

इसके अलावा यूपी व अन्य राज्यों से 50 लाख 47 हजार 948 क्विंटल धान खरीदा गया, इसे कच्चा आढ़तियों से खरीदा दिखाते हुए लाखों रुपये की कर चोरी भी सामने आई है। इसके अलावा जब एसआईटी ने गोदामों का स्टाक वैरिफिकेशन किया तो बाजपुर, काशीपुर, रुद्रपुर व किच्छा में अनाज के बोरे ही गायब मिले। 3680 बोरों में टैग गलत पाए गए। धान की नीलामी अथवा खुली नीलामी से बोली लगाई जाने की व्यवस्था के तहत दस फीसदी मामलों में बिल बनाए गए। इस घोटाले में राइस मिलर्स ने भी चांदी काटी। मंडियों में फर्जी तरीके से धान की खरीद दिखाई गई। चावल घोटाले में भी पूरा सिंडीकेट काम करता रहा।

इस मामले में जिलाधिकारी नीरज खैरवाल का कहना है कि, “अभी घोटाले में विस्तृत जांच की जरूरत है। शासन के निर्देश पर वह अग्रिम कार्रवाई करेंगे। मुख्यमंत्री ने यह कह दिया है कि जरूरत पड़ी तो चावल घोटाले में एफआईआर कराई जाएगी।” माना जा रहा है कि विस्तृत जांच के बाद ही एफआईआर कराई जा सकती है।खाद्यान्न घोटाला सामने आने के बाद समय समय पर उच्चाधिकारियों द्वारा की जाने वाली समीक्षा बैठकों पर भी सवाल उठने लगा है। आखिर समीक्षा बैठकों में यह अनियमितताएं क्यों सामने नहीं आती? घोटाले होते रहें तो फिर पर्यवेक्षण अधिकारियों की समीक्षा बैठकों का औचित्य क्या है?

एनएच 74 में हुए मुआवजा घोटाले पर गौर करें तो समय समय पर उच्च अधिकारी समीक्षा करते रहे, मगर घपला कहीं पकड़ में नहीं आया। एनएच घोटाला खुलता भी नहीं यदि तत्कालीन एसएलएओ ने माफियाओं की मनमर्जी पर रोक न लगाई होती। खैर मुआवजा घोटाला खुला तो उसकी परतें उधड़ती चली गई।

इसी तरह खाद्यान्न घोटाला सामने आया है। खाद्यान्न घोटाला भी तब सामने आया जब मुख्यमंत्री ने इसकी जांच के लिए एसआईटी का गठन किया। सवाल यह उठता है कि धान खरीद से लेकर खाद्यान्न योजना तक की समीक्षा बैठकें हुई तो यह अनियमितताएं क्यों पकड़ में नहीं आई?  अफसर उस वक्त क्यों नजरें फेरे रहे?  यदि योजना की समीक्षा बैठकों में ही अनियमितताएं पकड़ी जाती तो शायद घोटाला हो ही नहीं पाता।