देहरादून। वन पंचायतों के सशक्तीकरण, वन पंचायतों के प्रबन्धन और वन क्षेत्र के निवासियों की आजीविका सुनिश्चित करने को लेकर आयोजित कार्यशाला में विस्तार से मंथन किया गया। कार्यशाला में वन पंचायतों के सदस्यों ने वन पंचायत नियमावली के क्रियान्वयन में आ रही बाधाओं और वन प्रबन्धन के कुशल संचालन के सम्बन्ध में सुझाव भी दिए गए।
शनिवार को राजपुर रोड स्थित मंथन सभागार में वन, वन्यजीव एवं पर्यावरण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत की अध्यक्षता और संसदीय कार्य, विधायी, वित्त एवं पेयजल मंत्री प्रकाश पंत की उपस्थिति में आतिथ्य में वन पंचायतों की गोष्ठी और प्रशिक्षण कार्यक्रम विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने कहा कि वर्तमान वन पंचायत नियमावली अत्यधिक जटिल है, जिससे इसके क्रियान्वयन में व्यवहारिक दिक्कतें सामने आ रही हैं। उन्होने वर्तमान नियमावली को बेहतर बनाने और क्रियान्वयन में सरलता लाने के लिए इसमें संशोधन की बात कही। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास रहेगा कि वन पंचायतें मात्र संख्याबल के अधार पर ना दिखें, बल्कि वन पंचायतें सक्रिय होनी चाहिए। उन्होने बड़ी वन पंचायतों को प्रत्येक वर्ष कम से कम दो लाख रुपये के कार्य अनिवार्य रूप से देने, आरक्षित वनों को छोड़कर शेष सभी प्रकार के वनों का प्रबन्धन वन पंचायतों को सौंपने, वनों में अग्नि सुरक्षा के लिए स्थानीय वन पंचायतों को भागीदार बनाने, मनरेगा के बजट का 20 प्रतिशत हिस्सा प्रत्येक वर्ष वन पंचायतों को अनिवार्य रूप से आंवटित करने, वन पंचायतों के प्रबन्धन में महिलाओं की भागीदारी को अधिक करने, वन पंचायतों का प्रशासनिक नियंत्रण राजस्व विभाग से हटाकर वन विभाग के अधीन करने तथा जंगल में विभिन्न प्रकार की वनस्पति और वन्यजीवों की संख्या को संतुलित करने वाली नीतियों को नियमावली में सम्मिलित करने की बात कही। उन्होने राज्य में महिला नर्सरी के लिए 2 लाख रुपये की धनराशि और बड़ी वन पंचायतों को प्रत्येक वर्ष कम से कम दो लाख रुपये के कार्य अनिवार्य रूप से सौंपने या देने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि वन पंचायतों का एक महा सम्मेलन गढंवाल मंडल का कोटद्वार और कुमाऊं मण्डल का पिथौरागढ में आयोजित किया जाएगा।
कार्यशाला में संसदीय कार्य, विधायी, वित्त एवं पेयजल मंत्री प्रकाश पंत ने कहा कि उत्तराखण्ड की वन पंचायतें भारत ही नही विश्व में भी एक अनूठा प्रयोग है। इनकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य स्थानीय समुदाय के जरिये वनों के कुशल प्रबन्धन व वन और वन उत्पादों के माध्यम से अपनी जीविका को मजबूत करना था। उन्होंने कहा कि समय के साथ-साथ आवश्यकता के अनुसार नियमावली में परिवर्तन होता आया है। वर्तमान में भी अगर कुछ ऐसे बिन्दु सामने आ रहे हैं, जो इसके कुशल क्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न करते हैं तो इसमें अवश्य संषोधन किया जाना चाहिए। उन्होने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कैम्पा, जायका, केन्द्र तथा राज्य सेक्टर जैसी विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से प्राप्त होने वाले फण्ड का व्यवस्थित तरीके से सदुपयोग किया जाए और वित्त का इस प्रकार आवंटन किया जाए ताकि सभी वन पंचायतों को समान रूप से वित्त की आपूर्ति होती रहे। उन्होने उपस्थित अधिकारियों कहा कि ऐसे स्थानीय तथा बाहरी स्थानों का भ्रमण करते हुए नवनमेशी और प्रेरणादायी उदाहरणों को अमल में लाया जाए, जहां उत्कृष्ट कार्य हुए हैं। उन्होने इस बात पर भी जोर दिया कि वन प्रबन्धन व पर्यावरण संरक्षण के तहत वन पंचायतों को स्वतः संसाधन निर्मित सक्षम बनाने के प्रयास किए जाने चाहिए।
कार्यशाला में वन पंचायतों के सरपचों/सदस्यों ने वन पंचातयों के प्रबन्धन में आ रही बाधाओं तथा उसके समाधान के बारे में महत्वपूर्ण सुझाव दिए। उनके द्वारा वन पंचायतों को आरक्षित वनों को छोड़कर बाकी सभी प्रकार के वनों का प्रबन्धन करने, विभिन्न योजनाओं के तहत मिलने वाला फण्ड समय से व पर्याप्त रूप मे देने, प्रत्येक वर्ष मनरेगा के तहत मिलने वाले बजट का 20 प्रतिशत हिस्सा वन पंचयतों के लिए आरक्षित करने, सम्पूर्ण 11 वन पंचायतों वाले जनपदों में वन पंचायतों के सशक्तीकरण के लिए अलग-2 वन प्रभाग बनाने, राज्य की सभी वन पंचायतों को कम से कम प्रतिवर्ष 50 करोड़ का बजट अनिवार्य रूप से आरक्षित करने, विभिन्न प्रकार की वित्तीय एजेंसियों के फंड को खर्च करने वन पंचायतों की भागीदारी सुनिष्चित करने इत्यादि सुझाव दिए गए। कार्यशाला में प्रमुख वन संरक्षक राजेन्द्र कुमार महाजन, प्रमुख वन संरक्षक वन पंचायत रेखा, अपर प्रमुख वन संरक्षक उत्तराखण्ड कैम्पा समित सिन्हा, अपर वन संरक्षक जायका उत्तराखण्ड अनूप मलिक, विभिन्न जनपदों के वनाधिकारी, राज्य भर से वन पंचायत सरपंच/सदस्य उपस्थित थे।