देहरादून ही नहीं, मसूरी भी कर रहा रिस्पना का दमनः मैड संस्था

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देहरादून। रिस्पना नदी में गंदगी का कारण केवल देहरादून नहीं, बल्कि मसूरी और आसपास का इलाका भी है। यह तथ्य मैड संस्था के शोध के बाद सामने आया। संस्थान के आठ घंटे में किए गए सात किलोमीटर के सफर में शोध में यह तथ्य सामने आए।

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देहरादून के शिक्षित छात्रों के संगठन मेकिंग ए डिफ्फेरेंस बाय बीइंग द डिफ्फेरेंस (मैड) संस्था के सदस्यों द्वारा किया गया आठ घंटे का रिस्पना नदी का ट्रैक कुछ चौंका देने वाले तथ्य सामने ला रहा है। इस बार सदस्यों ने उस क्षेत्र से अपनी शोध यात्रा शुरू की जहां तक वह शिखर फॉल्स एवं राजपुर से होते हुए पहुंच गए थे। शिखर फॉल्स से बरलोगंज तक का सफर तय करने के बाद इस बार संस्था के सदस्यों ने बरलोगंज के ही पास स्थित मौसी फॉल्स से मौसी नदी, जो रिस्पना की सबसे बड़ी सहायक नदी है, उसका पीछा करना शुरू किया और अंत में लगभग आठ घंटो में सात किलोमीटर की जटिल यात्रा तय करने के बाद मैड के युवा वुडस्टॉक स्कूल के समीप के जंगल से निकले। शोध यात्रा के दौरान यह सामने आया कि आम जन मानस में जो प्रचलित है उसके विपरीत, रिस्पना का दमन न सिर्फ देहरादून में हो रहा है बल्कि मसूरी भी अनियंत्रित तरीके से रिस्पना का पानी चूस रही है।

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मौसी फॉल्स के ऊपर के क्षेत्र में चलते चलते मैड संस्था के सदस्यों ने लगभग चार पांच पानी के टैंक देखे जिससे यह साफ हुआ कि यह पानी नदी से सीधे खींचा जा रहा है। आम तौर अधिकारीगण सिर्फ इतना मानते थे कि रिस्पना का पानी जल संस्थान द्वारा शिखर फॉल्स से लिया जा रहा है जबकि अब यह सामने आ रहा था कि कई जगहों पर शिखर फॉल्स पहुंचने से कई कदम पहले मौसी फॉल्स से भी पूर्व मसूरी क्षेत्र में रिस्पना का पानी लिया जा रहा है। सबसे चौंका देने वाली बात तो यह थी कि कई जगह यह पानी जल संस्थान एवं जल निगम द्वारा नहीं बल्कि नामी गिरामी निजी स्कूलों द्वारा सीधे नदी से खींचा जा रहा है और बड़ी बड़ी मोटर लगा कर ऐसा किया जा रहा है जिसकी ध्वनि पूरे वातावरण को दूषित कर रही है। और तो और संस्था के सदस्यों ने यह भी देखा कि एक ओर जहां जल की अविरल धारा साफ पानी के साथ बह रही है, वहीं दूसरी ओर दुनिया भर का कूड़ा कचरा मसूरी द्वारा भी रिस्पना में डाला जा रहा है। इस सबके बीच जल ने अपना बहाव किसी तरीके से रखा हुआ है लेकिन इससे यह साफ़ है कि रिस्पना को खतरा दून से ही नहीं बल्कि मसूरी के असंतुलित विकास से भी है। 

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कहने पर ही संस्था ने इस क्षेत्र को पूरा करने की ठानी जिस पर दस्तावेज और तथ्य मौजूद ही नहीं हैं। मैड के संस्थापक अभिजय नेगी ने बताया कि ”शोध का मकसद था कि रिस्पना संरक्षण को लेकर न सिर्फ लोगों को जागरूक किया जाए बल्कि मसूरी और देहरादून में बैठे अधिकारीयों की आंखे भी खुले ताकि नदी के संरक्षण एवं पुनर्जीवन के लिये उचित कार्यवाही की जायगी। उन्होंने बताया कि शोध में यह भी पाया कि मौसी फॉल्स के ऊपर ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां जल संवर्धन के प्रयास किये जा सकते हैं और इस और भी सरकार व जो भी जरूरी संस्थान हैं उनका ध्यान आकर्षित किया जाए। संस्थान की ओर से शोध करने वालों में संस्था के संस्थापक अध्यक्ष अभिजय नेगी, शार्दुल असवाल, विजय प्रताप सिंह, हृदयेश शाही शामिल रहे।”