भाजपा की नाक बचाएगा उत्तराखंड

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देवभूमि कहलाने वाले देश के दुर्गम पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार इस बार बेहद पेचीदा और धुआंधार रहा। चुनाव से पहले और उसके दौरान भी कांग्रेस और भाजपा ने देश की राजनीति से जुड़े तमाम दाव आजमाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सत्ता की अंधी चाहत में भाजपा ने तो इस बार तमाम ऐसे प्रयोग कर डाले जिनके लिए वो पिछले 37 साल से कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करती आ रही है। चाहे राजनीतिक तिकड़म हो या पैसा झोंकने का सवाल भाजपा ने इस बार उत्तराखंड में सबको पीछे छोड़ दिया। भाजपा की कार्यशैली से साफ जाहिर है कि उत्तराखंड को जीतने के लिए वह कितनी बेताब है। और आखिर हो भी क्यों न! दरअसल उत्तराखंड ही उन पांच राज्यों में एकमात्र ऐसा राज्य है जो छोटा होने के बावजूद राजनीतिक दृश्टि से भाजपा की नाक बचा सकता है। विधानसभा चुनाव का ताजा दौर जिन पांच राज्यों में चल रहा है, उनमें पंजाब, और गोवा में भाजपा सत्तारूढ़ है। उन दोनों राज्यों में भाजपा को षासन से जनता की नाराजगी के साथ ही कांग्रेस के अलावा आप जैसे नए प्रतिद्वंद्वी को भी झेलना पड़ रहा है।इससे उनमें सत्ता में वापसी के आसार धूमिल हैं।

तीसरा राज्य मणिपुर है, जहां भाजपा पहली बार सत्ता के लिए दावेदारी के इरादे से चुनाव लड़ रही है। इसी वजह वहां का चुनाव परिणाम भी भाजपा के लिए अनिष्चित है। अब बचे दो सहोदर राज्य, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड। जाहिर है कि उत्तर प्रदेष बहुत विशाल राज्य है। उसके अलग-अलग अंचलों का राजनीतिक मिजाज भी भिन्न-भिन्न है। इसीलिए उत्तर प्रदेश में 405 विधानसभा सीटों के लिए पूरे सात दौर में मतदान कराया जा रहा है। वहां सत्ता की जीतोड़ लड़ाई में भाजपा का अपने बराबर के दो अन्य दावेदारों बसपा और सपा-कांगेस किलेबंदी से जोरदार मुकाबला है। सपा-कांग्रेस किलेबंदी ने जाहिर है कि भाजपा के लिए सत्ता की लड़ाई कठिन बना दी है। दूसरी तरफ बसपा भी मायावती की अगुआई और मुसिलमान-दलित गठजोड़ के फार्मूले के कारण बड़ी चुनौती साबित हो रही है।

इस लिए उत्तर प्रदेश की लड़ाई में भाजपा को अपने लिए बिहार जैसे नतीजे आने की आषंका सता रही हो तो भी ताज्जुब नहीं। ऐसे में ले-दे कर उत्तराखंड ही ऐसा राज्य बचा जिसका हर पांच साल बाद सत्तारूढ़ दल को बदल देने का रिकॉर्ड है। राज्य की मुख्य चुनाव अधिकारी राधा रतूड़ी को इस बात का गर्व भी है। उनके अनुसार उत्तराखंड भले ही छोटा ओर दुर्गम मौसमी पिरस्थितियों वाला राज्य हो मगर यहां का मतदाता बहुत समझदार है। पिछले दस साल से राज्य में विभिन्न विधायी सदनों के चुनाव करवा रहीं सुश्री रतूड़ी बताती हैं कि लोग यहां अपने मत के जरिए बोलते हैं। इसीलिए उनके अनुसार उत्तराखंड में चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हो जाते हैं।

इसीलिए भाजपा ने उत्तराखंड का विधानसभा चुनाव जीतने के लिए अपनी चाल, चरित्र, चेहरा और नारा तक कुछ भी बदलने से परहेज नहीं किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित षाह ने राज्य में रिकार्ड तोड़ रैलियां कीं और अपने मार्गदर्षक मंडल के अलावा सभी बड़े नेताओं, मंत्रियों को पहाड़ों की सैर करवा दी। इससे पहले किसी पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष अथवा प्रधानमंत्री ने इतने बड़े पैमाने पर राज्य में चुनाव प्रचार नहीं किया। इससे जाहिर है कि पांच राज्यों में कम से कम उत्तराखंड में तो अपनी जीत सुनिष्चित करके भाजपा इस दौर में अपनी नाक बचाने का जुगाड़ कर लेने को आतुर है। सत्तर सदस्यों वाली राज्य विधानसभा की 69 सीटों पर 15 फरवरी को वोट पड़ेंगे। फिलहाल कार्यकर्ता और उम्मीदवार घर-घर गुहार लगाने में व्यस्त हैं। प्रचार अभियान सोमवार शाम पांच बजे थम चुका हे। कर्णप्रयाग विधानसभा सीट पर बहुजन समाज पार्टी प्रत्याशी की मौत के कारण मतदान बाद में होगा। राज्य में 76,10,126 मतदाता हैं, जिनमें 40,00751 पुरुष और 36,09,190 महिला मतदाता हैं।

यह बात दीगर है कि महिला मतदाताओं की इतनी बड़ी तादाद ओर मतदान में उनकी भागीदारी अव्वल होने के बावजूद भाजपा ने कुल छह और कांग्रेस ने भी महज आठ महिला उम्मीदवारों को ही पार्टी उम्मीदवार बनाया है। हालांकि प्रधानमंत्री की सभाओं में भारी मौजूदगी दर्ज करा कर प्रदेश की महिलाओं ने भाजपा को आईना जरूर दिखाया है।यह महिलाएं राज्य की दुर्गम परिस्थितियों में भी काम ओर गृहस्थी के बोझ को हंसतं-हंसते झेल जाने वाली बेहद मजबूत इच्छाशक्ति से लैस हैं। प्रदेश में 34 पॉलिटिकल पार्टियों के कुल 637 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस ने सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इनके अलावा बसपा ने 69,  सीपीआई ने 5, सीपीएम ने 5, एनसीपी ने 2, आरएलडी ने 3, सपा ने 21, एसएस ने 7 उम्मीदवारों को चुनाव लड़ाया है। इनके अलावा 262 निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में डटे हुए हैं।

उत्तराखण्ड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गढ़वाल और कुमांउ मंडल में तीन दिनों में ताबड़तोड़ चार रैली कर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने का काम किया। वहीं कांग्रेस राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हरिद्वार में 10 विधानसभा में रोड शो कर मोदी की रैली का जवाब देकर जनता को कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने की अपील की। बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी अपने प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करते हुए कांग्रेस-भाजपा से लोगों को दूर रहने की सलाह दी।कुल मिलाकर अब देखना यही है कि उत्तराखंड जैसे बेहद महत्वपूर्ण मगर संख्या बल में छोटे से राज्य का मतदाता प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की नाक बचाएगा अथवा अपने बीच के हरदा यानी मुख्यमंत्री हरीष रावत को ही अगले पांच साल के लिए गले लगाएगा।