देहरादून। स्वास्थ्य विभाग प्रदेश में डॉक्टरों की कमी को देखते हुए अब जिलों के अस्पताल परिसर में स्थित ट्रामा सेंटर को अस्पताल से ही जोडऩे की तैयारी कर रहा है। इससे न केवल डॉक्टरों की कमी दूर होगी, बल्कि ट्रामा सेंटर के उपकरणों को भी अस्पताल के कार्यों में इस्तेमाल किया जा सकेगा।
प्राकृतिक आपदाओं और आए दिन सड़क हादसों में घायल होने वाले लोगों की जान बचाने के लिए बनाए गए ट्रॉमा सेंटर खुद ‘आपदा’ का शिकार हैं। प्रदेश के विभिन्न जिलों में बनाए गए इन ट्रॉमा सेंटर में घायलों को सभी विशेषज्ञताओं की चिकित्सीय सुविधाएं उपलब्ध कराए जाने का लक्ष्य था, लेकिन स्वास्थ्य विभाग इनमें पर्याप्त स्टाफ तक मुहैया नहीं करा पाया। कारण यह कि महकमा डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है। इस स्थिति को देखते हुए प्रदेश के जिला अस्पताल परिसर और अस्पताल के 100 मीटर के दायरों में स्थित ट्रामा सेंटर को जिला अस्पताल से जोडऩे की कवायद शुरू हो गई है। इसका मकसद यह है कि डॉक्टर व उपकरणों का एक जगह भरपूर उपयोग हो सके।
एक छत के नीचे मिलनी थीं सभी सुविधाएं
ट्रॉमा सेंटर के पीछे मंशा यह थी कि आपदा एवं दुर्घटना के दौरान घायलों व गंभीर बीमार को एक छत के नीचे सभी स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें। इसके लिए केंद्र के सहयोग से जनपद मुख्यालयों में ट्रॉमा सेंटर की स्थापना की गई।
ट्रॉमा सेंटर का मानक पूरा करना भारी
मानकों के अनुरूप ट्रॉमा सेंटर में ग्यारह विशेषज्ञ चिकित्सक होने चाहिए। इनमें दो सर्जन, दो रेडियोलॉजिस्ट, दो एनेस्थेसिस्ट, दो आर्थो सर्जन और तीन ईएमओ शामिल हैं। लेकिन प्रदेश में विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी के कारण यह मानक पूरा करने में भी दिक्कत आ रही है। ऐसे में अब इनके अस्पतालों में विलय का निर्णय लिया गया है।
कहां कितने ट्रॉमा सेंटर
उत्तरकाशी-एक
चमोली-दो (कर्णप्रयाग व गोपेश्वर)
देहरादून-तीन(विकासनगर, ऋषिकेश व दून)
हरिद्वार-एक(रुड़की)
बागेश्वर-एक
ऊधमसिंहनगर-एक (काशीपुर)
अल्मोड़ा-दो (अल्मोड़ा व रानीखेत)