देहरादून, नमस्कार, आदाब और सत-श्री-अकाल! “मैं हूं आपकी दोस्त, आपकी खोज, चुलबुली सी नूपुर कर्णवाल और आप हैं मेरे साथ रेडियो-खुशी में!” कुछ इसी अंदाज में अपनी खनकती आवाज का जादू बिखेर रही नूपुर की आवाज पहाड़ों से उतर कर मैदानों तक अपने लिसनर को रेडियो तक खींच के लाती है।
उत्तराखंड में कहीं खो गए रेडियो को एक बार फिर लोकप्रिय बनाने का काम मसूरी की नूपुर ने शुरू किया। शुरुआत में FM रेनबो के जरिए अपनी आवाज को श्रोताओ तक पहुंचाया, उसके बाद रेडियो खुशी के जरिए अपनी एक अलग पहचान बनाई नूपुर ने। इस कामयाबी में उनके हमसफ़र अर्जुन का साथ एक मजबूत पिलर की तरह काम करता रहा। देहरादून मे कम्युनिटी रेडियो खुशी की शुरुआत कर नूपुर ने अपना एक नया मुकाम बनाया है।
आज विश्व रेडियो दिवस है,13 फरवरी 1946 को यूनेस्को में स्थापित रेडियो से प्रसारण प्रारंभ हुआ था। शिक्षा के प्रसार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सार्वजनिक बहस में रेडियो की भूमिका को रेखांकित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को ने पहली बार, 13 फरवरी, 2012 को पहली बार विश्व रेडियो दिवस के रूप में मनाया। तभी से हर साल इसी दिन विश्व रेडियो दिवस के रूप में मनाया जाता है।
विश्व की 95 प्रतिशत जनसंख्या तक रेडियो की पहुंच है और यह दूर-दराज के समुदायों और छोटे समूहों तक कम लागत पर पहुंचने वाला संचार का सबसे सुगम साधन है। बात भारत की करें तो वर्तमान में आकाशवाणी के करीब 223 केंद्र है इसके अलावा कई विश्वविद्यालयों और निजी कम्पनियों के रेडियो केंद्र हैं।
हमारे आसपास हल्द्वानी में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय और पंतनगर सामुदायिक रेडियो केंद्र चल रहे हैं। यूओयू का सामुदायिक रेडियो हैलो हल्द्वानी बदलते शहर की धड़कन के रूप में सामने आया है, वहीं पंतनगर जनवाणी सामुदायिक रेडियो ने किसानों की समस्याओं को आवाज देने का काम किया है। और ऐसे में रेडियो आज भी लोकप्रियता हासिल करता जा रहा है