ऋषिकेश। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त धार्मिक एवं पर्यटन नगरी का सरकारी अस्पताल सरकार की उपेक्षा का ही शिकार होकर रह गया है। गढ़वाल के मुख्य द्वार के राजकीय चिकित्सालय में जो सुविधाएं होनी चाहिए, वह उपलब्ध नहीं हैं। इमरजेंसी में एक्सपर्ट चिकित्सकों के साथ-साथ हाइटेक चिकित्सीय सुविधाओं का लगातार टोटा बना हुआ है।
लड़ाई-झगड़ों के मेडीकल रिपोर्ट बनाई जा रही है। छोटी-मोटी चोटों का इमरजेंसी में इलाज किया जा रहा है, लेकिन गंभीर हाल में कोई मरीज आ जाए तो उसको उपचार नहीं मिल पाता। यहां ऑक्सीजन, स्ट्रैचर, मामूली चोटों की मरहम पट्टी करने के लिए दवाएं और उपकरण मौजूद हैं, पर उनका लाभ मरीजों का नहीं मिल पा रहा है। यहां शायद ही कभी किसी मरीज को ऑक्सीजन लगाई जाती हो।
राजकीय चिकित्सालय में कार्डियोलॉजिस्ट,रेडियोलाजिस्ट ,चाइल्ड स्पेशलिस्ट, स्किन डॉक्टर शहीत विशेषज्ञों की कमी होने से तीर्थ नगरी का सरकारी अस्पताल आज एक प्राथमिक उपचार केंद्र बनकर ही रह गया है। प्राथमिक उपचार देने के बाद चिकित्सक गंभीर रोगियों को यहां से तुरंत रेफर की सलाह देते हैं। वह रोगी के तीमारदारों को इतना भयभीत कर देते हैं, कि उसे उस समय कोई दूसरा विकल्प नहीं सूझता है। इन सबके बीच विश्व प्रसिद्ध चारधाम यात्रा शुरू होने मे बेहद कम ही समय बचा है ऐसे मे यदि यात्रा सीजन मे कोई दुघर्टना हुई तो यहां मुक्कमल उपचार भी यात्रियों को मिलना मुश्किल है। राजकीय चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एनएस तोमर का कहना है कि डॉक्टरों की कमी को लेकर लगातार स्वास्थ्य निदेशालय को पत्र व्यवहार किया जा रहा है, लेकिन पूरे राज्य में डॉक्टरों का अभाव बना है। इसके चलते मरीजों को काफी असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
डॉ. तोमर का कहना था कि पिछले दिनों स्थानीय लोगों द्वारा किए गए डॉक्टरों की मांग को लेकर आंदोलन के बाद 4 डॉक्टरों को भेजा गया है, लेकिन वह भी इमरजेंसी सहित पोस्टमार्टम जैसे मामलों को देख रहे हैं जिसके कारण भाइयों को अभी भी परेशानी से जूझना पड़ रहा है। उनका कहना था की प्कड़वी सच्चाई यही है कि नाम बड़े और दर्शन छोटे की कहावत को चरितार्थ कर रहे ऋषिकेश के सरकारी अस्पताल के दिन कब बहुरेंगे। यह वर्षो से अब तक भविष्य के गर्भ मे ही बना हुआ है।