गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए पांच राज्यों को निर्देश

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ऋषिकेश, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश समेत गंगा बेसिन में आने वाले 5 राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा है कि वह औद्योगिक कचरा बहाने वाली सभी इंडस्ट्री को यह सुनिश्चित कराएं कि शिवराज शोधन प्लांट एसटीपी से शोषित शोधित पानी को दोबारा इस्तेमाल करें। गंगा में प्रदूषण रोकने के लिए पीसीबी को आदेश दिया गया है कि वह ऐसे उद्योगों को जारी किए गए संचालन की अनुमति में बदलाव करें। गंगा से जुड़े राज्य उत्तराखंड उत्तर प्रदेश बिहार झारखंड और पश्चिम बंगाल के पीसीबी को यह निर्देश दिए गए हैं।

लेकिन उत्तराखंड में भी हालात कोई अच्छे नहीं है। यहां गंगोत्री से लेकर हरिद्वार तक कई होटल्स, कई आश्रम और शहरों के गंदे नाले गंगा में प्रदूषण को लगातार बढ़ाते जा रहे हैं। राज्य निर्माण के इतने साल बाद भी अभी तक सरकार गंगा को बचाने के लिए प्रॉपर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट गंगा तट पर बसे शहरों में स्थापित नहीं कर पाई है, जिसके चलते रोज ही गंदे नालों से होता हुआ सीवरेज का पानी गंगा में प्रभावित होता है और गंगा अपने ही घर में मैली होती जा रही है।

उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने शहरी क्षेत्रों में तो बीते एक-दो साल में होटलों पर कार्रवाई की है लेकिन अगर बात करें उत्तरकाशी, देवप्रयाग और गंगा से सटे कई कस्बों और शहरों की वहां की स्थिति अभी भी जस की तस बनी हुई है। ऐसे में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा उत्तराखंड राज्य को दी गई गाइड लाइन भी कहीं ना कहीं सुस्त पड़े विभाग को जगाने के लिए काम आएंगी, गंगा अपने ही घर में मेली है तो दुसरे राज्यों का कया कहना।

उत्तराखंड के गढ़वाल  छेत्र में गंगा के मुहाने से लेकर हरिद्वार तक कई शहरी और ग्रामीण आबादी वाले नगर पंचायत और पालिका छेत्र है जिन की आबादी और टूरिस्ट डेस्टिनेशन का सारा मल मूत्र, सीवर का पानी सीधे गंगा में डाल दिया जाता है क्योकी अभी तक राज्य सरकार उत्तराखंड के गहन आबादी वाले छेत्रो में भी सीवर ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लगा पाई है। बात करे ऋषीकेश की तो यहाँ  गंगा प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण गंगा में मिलने वाले गंदे नाले है, ऐसे नालो कि संख्या  लगभग 13 के आस पास है , जो गंगा में सीधे शहर कि तमाम गंदगी को मिला रहे है।

ऋषिकेश- हरिद्वार और स्वर्गाश्रम छेत्र विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता है ,यही कारण है यहाँ साल भर देशी विदेशी सैलानियो का ताता लगा रहता है , जिस के चलते गंगा के तटों पर अवैध निर्माण की मानों बाड सी आ गयी है। जगह-जगह आश्रम , होटल- रिसार्ट ने यहाँ के गंगा के स्वरुप को ही बिगाड़ दिया है।  इन निर्माण का सारा गन्दा अपशिस्ट सीधे गंगा में जाता है जिससे गंगा की शुद्धता और निर्मलता को नुकसान हो रहा है। आलम ये है की आज गंगा अपने ही घर में मैली हो चुकी है।

ऋषीकेश अौर गंगा से सटे शहरो  के नालो पर अगर वहा का स्थानीय प्रशासन समुचित धायन दे तो वो दिन दूर नहीं जब गंगा प्रदूषण में काफी कमी लायी जा सकती है ओर आने वाली पीढी को स्वछ अौर निर्मल गंगा का जल मिल सकता है, जरूरत है तो एक ठोस पहल कि जिस पर जल्द से जल्द कदम उठाने होगें नहीं तो पीने के पानी के साथ-साथ खेतो में भी जहर की मात्रा बड जाएगी।