मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सभी जिलाधिकारियों को आगामी बरसात से पहले सभी तैयारियां पूरी करने के निर्देश दिए। उन्होंने जिलाधिकारियों को ताकीद किया कि किसी भी तरह के भूस्खलन, बादल फटने, बाढ़ या जल भराव के समय रिस्पांस टाइम देखा जाएगा। आपदा की स्थिति में बचाव और राहत कार्य कितने जल्दी शुरू हुआ, इसपर विशेष बल दिया जाएगा। इसके लिए आपदा प्रबंधन विभाग ने आईआरएस सिस्टम विकसित किया है। एसओपी (स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर) निर्धारित है। राज्य और जिला स्तर पर मॉक ड्रिल कराये गए हैं। गांव स्तर तक बचाव और राहत कार्य का प्रशिक्षण दिया गया है।
सचिव आपदा प्रबंधन अमित नेगी ने बताया कि, “मार्ग बंद होने की स्थिति में तत्काल खोले जाय। साथ ही वैकल्पिक मार्ग का चिन्हीकरण कर लिया जाय। यात्रा मार्ग पर रास्ता बंद होने की स्थिति में पर्यटकों के रहने, खाने, पेयजल, परिवहन, शौचालय आदि जरूरी इंतजाम किए जायं। संभावित भूस्खलन वाले स्थानों पर जेसीबी पहले से ही तैनात रहे। ट्रांसशिपमेंट के लिए दोनों तरफ गाड़ियां लगाने हेतु अभी से तय कर लें। दुर्घटना संभावित क्षेत्रों में क्रैश बैरियर, साइनेज, रिफ्लेक्टर लगा दें। देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर और चम्पावत में बाढ़ की स्थिति से निपटने के लिए बाढ़ चैकियों को चिन्हित कर लें। राहत शिविर के लिए स्कूल, अस्पताल,सामुदायिक भवन आदि तय कर लें। खोज और बचाव उपकरणों की जांच कर लें। जरूरत हो तो और भी खरीद लें। संचार व्यवस्था सुचारू रहे इसके लिए मोबाइल कंपनियों के साथ बैठक कर लें। यह भी देख लें कि बिजली जाने की दशा में बैकअप की पर्याप्त व्यवस्था है। उपलब्ध कराए गए डीएसपीटी, वायरलेस फोन और सॅटॅलाइट फोन की जांच कर लें। तीन महीने के लिए खाद्यान्न, मिट्टी के तेल की व्यवस्था कर लें।”
सचिव स्वास्थ्य नितेश झा ने बताया कि, “पर्वतीय क्षेत्रों में भी काफी हद तक डॉक्टरों की व्यवस्था हो गयी है। अभी और डॉक्टरों की तैनाती की जा रही है । केदारनाथ में सिग्मा के माध्यम से हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टरों की व्यवस्था की गई है। यात्रा मार्ग पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हार्ट से कार्डियक डॉक्टरों की व्यवस्था की जा रही है। 108 के 65 एम्बुलेंस जल्द तैनात हो जाएंगे।इसके बाद 50 और 108 एम्बुलेंस की व्यवस्था की जा रही है। इनकी मॉनिटरिंग 108 डैशबोर्ड से की जा रही है।”