नंदा की छतोंलियां मंदिरों को लौटी, 17 को मनायी जाएगी नंदाष्टमी

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हिमालय की आराध्या मां नंदा की नंदाष्टमी इस बार सोमवार 17 सितम्बर को मनायी जायेगी। हिमालयी क्षेत्रों की यात्रा के बाद नंदा की छतोंलियां अपने मंदिरों में आ गई है। अनेक स्थानों पर नंदा अष्टमी का पर्व भव्य रूप से मनाया जाएगा। उर्गम घाट स्वनुल नंदा भी नंदीकुंड में पहुंची है। भ्राद पद की अष्टमी की एक विशेषता यह भी है कि जडी बूटियों के जानकार बताते है कि भ्राद पद की अष्टमी के बाद ही उच्च हिमालयी बुग्यालों में उगने वाली जडी बूटियां उपचार के लिए निकाली जाती है।
हिमालय की आराध्या नंदा देवी मानी जाती है। जिस तरह से महाराष्ट्र व अन्य क्षेत्रों में गणेशोत्सव की धूम रहती है ठीक उसी तरह हिमालय के उत्तराखंड में नंदा उत्सव मनाया जाता है। चमोली जनपद के विभिन्न क्षेत्रों में नंदा की छतोंलियां हिमालय की यात्रा पर है, कुछ छतोलियां जो लोट गई है वे अपने-अपने मंदिरो में नंदा उत्सव या नंदा अष्टमी पर आ गई है। उर्गम घाटी में नंदा उत्सव की धूम है। यहां के नंदा पर्व से जुडे रघुवीर बिष्ट कहते है कि मां स्वनुल नंदा की अष्टमी विधि विधान के साथ मनायी जाती है। गोपेश्वर के निकट डुंग्री में दो दिन का नंदा उत्सव शुरू हो गया है।
ब्रह्मकमल लाते है बुग्याल से बांटते है प्रसाद के रूप में
12 हजार फीट की उंचाई पर उगने वाले राज्य पुष्प और देवताओं को चढने वाले ब्रह्म कमल को फुलारी (फूल लाने वाले) बुग्यालों से लाते है ओर नंदा के प्रसाद के रूप में इसे सबको बांटा जाता है। रूद्रनाथ के नंदी कुंड से सोमवार को ही निर्धारित समय पर ब्रह्म कमल पुष्प तोड कर गोपेश्वर शिव मंदिर में लाया जा जायेगा फिर उसे प्रसाद स्वरूप बांटा जायेगा। जोशीमठ में भगवती के मंदिरों में फूलकोठा उत्सव मनाया जाता है।
हिमालयी जडी बूटियां अष्टमी के बाद ही निकाली जाती है
हिमालयी बुग्याली क्षेत्रों में उगने वाली बहुमूल्य और अनेक रोगों का उपचार करने वाली वनोषदी नंदा अष्टमी के बाद ही निकाली जाती है। ग्वाड गांव के सुरेंद्र सिंह जो जडी बूटियों के जानकार है कहते है कि भ्राद पद की अष्टमी के बाद ही जडी बूटी निकाली जाती है पहले इनकी पूजा की जाती है और प्रार्थना की जाती है कि जिस हेतु ये निकाली जा रही है वह सिद्ध हो जाए। इसका एक अंश देवताओं को चढाया जाता है। जडी बूटी निकाले से पहले वन देवता और वन परियों की पूजा की जाती है। दिनेश प्रसाद तिवारी बताते है कि वन देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पूजा सामग्री ले जानी पडती है। भ्राद पद की अष्टमी के बाद निकाली गई जडी बूटी ही लाभकारी होती है। शोध के अनुसार भ्राद पद की अष्टमी तक ये जडी बूटी परिपक्व हो जाती है तब ही ये उपचार के काम आती है।