(ऋषिकेश) श्राद्ध पक्ष प्रारंभ होते ही धर्म नगरी ऋषिकेश में पितरों के तर्पण की प्रक्रिया शुरू हो गई। गणेश उत्सव निपटने के बाद देश भर में आज से श्राद्ध पक्ष का आरंभ हो गया।
श्राद्ध पक्ष की शुरुआत सोमवार से हुई। पहले दिन पूर्णिमा के श्राद्ध पर पितरों को तर्पण के साथ ही ब्राह्मण भोज हुआ। पूर्णिमा पर जिन पितरों का श्राद्ध था, उनके मनपसंद व्यंजन घरों में बनाए गए। दिवंगत पितर के नाम से तर्पण कर पंच ग्रास गाय, कुत्ता, कौआ और अन्य जीवों को अर्पण किए गए। इसके बाद ब्राह्मण भोज करा कुटुंबियों ने भोजन किया। श्राद्ध के दिन विशेष रूप से बहन-बेटियों को भोजन कराने का महत्व है।
आश्विन के कृष्ण पक्ष में पूर्वजों के पूजन का पर्व पितृ पक्ष सोमवार से शुरू हो गया।प्रथम श्राद्ध पर गंगा तट त्रिवेणी घाट पर लोगों ने तर्पण कर पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त कर पितृ ऋण से मुक्ति की प्रार्थना की। गंगा तट पर कर्मकाण्ड सम्पन्न कराने वाले पंडित राम गोपाल शर्मा ने बताया आज श्रद्वालुओं द्वारा पूर्णिमा का श्राद्ध किया गया।इस दिन उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है जिनका स्वर्गवास पूर्णिमा के दिन होता है। 25 सितंबर को सुबह पूर्णिमा है, लेकिन इस दिन मध्याह्न में प्रतिपदा का श्राद्ध होगा जबकि अगले दिन सुबह 8.57 बजे तक प्रतिपदा है फिर भी इस दिन मध्याह्न में द्वितीया श्राद्ध लोग करेंगे। तर्पण और श्राद्ध मध्याह्न में करना चाहिए इस समय ही पूर्वज आते हैं ऐसी मान्यता शास्त्रों में है
किस दिन किसका श्राद्ध, इस बार इस बार षष्ठी की हानि
27 को तृतीया, 28 को चतुर्थी , 29 को पंचमी (भरणी) का श्राद्ध , 30 को षष्ठी का श्राद्ध होगा। इस बार पितृ पक्ष में षष्ठी तिथि की हानि है। एक अक्टूबर को सप्तमी, दो को अष्टमी का श्राद्ध होगा। तीन अक्टूबर को नवमी (सौभाग्यवती स्त्रियों) का श्राद्ध किया जाएगा। चार को दशमी, पांच को एकादशी, छह को द्वादशी का श्राद्ध होगा। द्वादशी के दिन ही संन्यासी व वैष्णव का श्राद्ध किया जाएगा। सात को त्रयोदशी , आठ को चतुर्दशी का श्राद्ध होगा। चतुर्दशी के दिन उनका श्राद्ध होता है जिनकी मृत्यु किसी हादसे में हुई हो या फिर फिर शस्त्र से की गई हो। नौ अक्टूबर को अमावस्या का श्राद्ध किया जाएगा। पितृ विसर्जन अमावस्या इस दिन होगी।
तीर्थ पुरोहित समिति के महामंत्री चेतन शर्मा का कहना था की श्राद्ध पक्ष में कय। करना है जरूरी है
1-श्राद्ध कर्म करने के लिए यज्ञोपवीत धारण करना जरूरी।
2-दक्षिण दिशा श्राद्ध के लिए उत्तम मानी गई है।
3-तर्पण, तिल दान तथा स्वधा शब्द के उच्चारण के साथ किया गया श्राद्ध पितरों को तृप्त करता है।