चिकित्सकों व सरकार के बीच आठ दिनों में भी नहीं निकाला कोई हल

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हरिद्वार। आठ दिनों से बंद निजी चिकित्सालयों के चिकित्सकों की सरकार द्वारा कोई सुध नहीं लेने के कारण शनिवार को भी मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। न ही सरकार के किसी जिम्मेदार मंत्री ने मरीजों पर चिंता जाहिर की है। सरकार की ओर से इन चिकित्सक संगठनों से बातचीत करने की कोई पहल नहीं की गई है।
निजी चिकित्सक मरीजों की तकलीफ और सरकार के असंवेदनशील व्यवहार से असमंजस की स्थिति में है। क्लीनिकल इस्टैब्लिमेंट एक्ट में परिवर्तन कराने को लेकर सरकार का विरोध कर रहे, चिकित्सक संगठनों की बात पर सरकार ने आठवें दिन भी कोई ध्यान नहीं दिया। इस कारण चिकित्सकों के हड़ताल पर होने से उत्तराखंड के हालात दिन प्रतिदिन विकट होते जा रहे है। सरकार और निजी चिकित्सकों की लड़ाई किस मोड़ पर आकर खत्म होगी। इसका जबाव किसी के पास नहीं है।
केंद्र सरकार के क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट को उत्तराखंड सरकार सख्ती से लागू करना चाहती है। चिकित्सकों का कहना है केंद्र की ओर से बनाए गए इस एक्ट में तमाम खामियां है, जो उत्तराखंड प्रदेश की भौगोलिक स्थिति के अनुरूप नहीं है। उत्तराखंड के अधिकतम निजी चिकित्सालय कमोवेश एकल स्वामित्व के हैं। जो बहुत ही कम स्थान में बने हुए हैं। कुछ क्लीनिक तो चिकित्सकों ने अपने घरों पर ही संचालित किए हुए हैं। ऐसी स्थिति में एक्ट के लागू होने के बाद इन चिकित्सकों को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन केंद्र सरकार के मसौदे में तैयार एक्ट के अनुसान इन निजी चिकित्सालयों को जारी रख पाना निजी चिकित्सकों के बस की बात नहीं है। सरकार के इसी एक्ट का निजी चिकित्सक संगठन विरोध कर रहे हैं। निजी चिकित्सक संगठनों का तर्क हैै कि राज्य की भौगोलिक स्थिति के अनुरूप एक्ट को बनाकर प्रभावी तरीके से लागू किया जाए। ताकि कानून के दायरे में रहकर निजी चिकित्सक अपने अस्पतालों की व्यवस्था बनाय रखे।
निजी चिकित्सक अपने आत्मसम्मान के साथ अपने मरीजों को सेवाएं देते रहें लेकिन सरकार के एक्ट को लेकर अड़ियल रवैये ने निजी चिकित्सकों को विवश कर आंदोलन की राह पर धकेल दिया। निजी चिकित्सक आठ दिनों से अपने चिकित्सालयों पर ताला लगाकर सरकार तक आवाज पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं।