क्या है अनुच्छेद 370, कैसे बना और अब क्या बदल गया

0
533
Representational Image
नई दिल्ली,  जिसका इंतज़ार था, आखिरकार सोमवार को वो घड़ी आ ही गई। मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को लेकर एतिहासिक फैसला लेते हुए राज्यसभा में कश्मीर आरक्षण संशोधन बिल पेश कर दिया । इस बिल के तहत अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया गया। गृह मंत्री अमित शाह ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड 1 के सिवा सारे खंडों को रद्द करने की सिफारिश कर दी। सरकार के इस ऐलान के बाद राज्यसभा में जमकर हंगामा बरपा तो अपना वोट बैंक छिनता देख हमेशा एक-दूसरे की जड़ें काटने में लगे रहने वाले जम्मू -कश्मीर के सियासतदान इस मुद्दे पर अचानक से एकजुट हो गए हैं।
सरकार की नई सिफारिश के मुताबिक –
  • अब जम्मू कश्मीर से लद्दाख को अलग कर दिया गया है।
  • लद्दाख को अब केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है लेकिन यहां विधानसभा नहीं होगी।
  • जम्मू-कश्मीर भी अब राज्य नहीं रहा है, अब ये भी एक केंद्र शासित प्रदेश होगा लेकिन यहां विधानसभा होगी।
जिसे लेकर इतना हंगामा बरपा हुआ है, आखिर वो अनुच्छेद-370  क्या, आइए…जानते हैं….
क्या है अनुच्छेद 370? 
अनुच्छेद-370 जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार देता है, जिसके मुताबिक, भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर को लेकर सिर्फ रक्षा व विदेश मामले और संचार के लिए ही कानून बना सकती है।  इसके अलावा, किसी कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए होती है। जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने 27 मई, 1949 को अनुच्छेद 306-ए (जो अब अनुच्छेद 370 है) में कुछ बदलाव करने के बाद इसे मंजूरी दे दी। भारतीय संविधान को 26 नवंबर, 1949 को एडॉप्ट किया गया था। लेकिन इससे करीब एक महीना पहले ही 17 अक्टूबर, 1949 को अनुच्छेद 306ए भारतीय संविधान का हिस्सा बन गया था। इसके साथ ही, जम्मू-कश्मीर को अपना अलग संविधान बनाने की अनुमति भी मिल गई थी।
अनुच्छेद -370 के तहत जम्मू कश्मीर के पास क्या हैं विशेषाधिकार – 
  • अनुच्छेद 370 में किए गए प्रावधानों के तहत, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में सिर्फ रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में ही कानून बनाने का अधिकार था।
  • इससे अलग मुद्दों पर कानून बनवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की मंजूरी लेनी पड़ती थी।
  • इस विशेष दर्जे के चलते जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की अनुच्छेद 356 लागू नहीं होती थी। राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं था।
  • 1976 का शहरी भूमि कानून भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता था, यानी बाहरी राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे।
अनुच्छेद – 370 की बड़ी बातें  – 
  • जम्मू-कश्मीर  के लोगों के पास दोहरी नागरिकता होती है।
  • जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग होता था, इसकी विधानसभा पर सूबे के झंडे के साथ भारत का राष्ट्रीय ध्वज लहराता है।
  • जम्मू-कश्मीर में भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं था।
  • जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 साल होता था, जबकि देश के बाकी राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 साल का होता है।
  • भारत की संसद जम्मू-कश्मीर के संबंध में बहुत ही सीमित दायरे में कानून बना सकती थी, भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अंदर मान्य नहीं होते हैं।
  • जम्मू-कश्मीर में महिलाओं पर शरीयत कानून लागू होता था। अगर यहां की कोई महिला किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर लेती है तो उस महिला की जम्मू-कश्मीर की  नागरिकता खत्म हो जाती थी।
  • लेकिन अगर कोई कश्मीरी महिला पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से शादी करती थी, तो उसके पति को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती थी।
  • जम्मू-कश्मीर में पंचायत के पास कोई अधिकार नहीं था।
  • जम्मू-कश्मीर के दफ्तरों में काम करने वाले चपरासियों को आज तक भी ढाई हजार रुपये का ही वेतन मिल रहा है।
  • कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदुओं और सिखों को 16 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता था।
  • अनुच्छेद 370 के चलते कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती थी।
  • इस सूबे में सूचना का अधिकार (आरटीआई) लागू नहीं होता था।
  • शिक्षा का अधिकार (आरटीई) और सीएजी भी यहां  लागू नहीं होता था।
ये तो हुई अनुच्छेद-370 की बात, अब बात करते हैं जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद- 35-ए की।  अनुच्छेद- 35-ए वो अनुच्छेद है, जो कश्मीर को विशेषाधिकार देकर लाखों लोगों के मानवाधिकार तक छीन लेता है।  ‘14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई वाली संघीय सरकार से सलाह -मशविरे के बाद एक आदेश पारित किया गया था, जिसके ज़रिये भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35ए जोड़ दिया गया। जवाहलाल नेहरू तथा जम्मू और कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला के बीच  हुए “1952 दिल्ली समझौते” के बाद इसे जारी कर दिया गया। यही अनुच्छेद आगे चलकर लाखों लोगों के लिए अभिशाप बन गया।
दरअसल, अनुच्छेद 35ए जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को ये अधिकार देता है कि वे ‘स्थायी नागरिक’ की परिभाषा तय कर सकें और उन्हें चिह्नित कर विभिन्न विशेषाधिकार भी दे सकें। ये अनुच्छेद परोक्ष रूप से विधानसभा को ये अधिकार भी दे देता है कि वो लाखों लोगों को ‘स्थायी नागरिक’ की परिभाषा से बाहर रख सके और उन्हें हमेशा के लिए शरणार्थी बनाए रखे। इस अधिनियम के पश्चात जम्मू और कश्मीर राज्य को भारतीय संविधान के राज्य में विस्तार का अधिकार मिल गया। धीरे-धीरे इस अनुच्छेद को अनुच्छेद 370 के अपवाद के रूप में देखा जाने लगा। ये अनुच्छेद संविधान में राष्ट्रपति आदेश द्वारा बिना संसद में चर्चा करवाए गए लागू हुआ था, इसलिए आज भी इसके लागू करने के तरीके को लेकर सवाल उठाये जाते हैं।
अनुच्छेद 35ए का जिक्र संविधान की किसी भी किताब में नहीं मिलता। हालांकि, संविधान में अनुच्छेद 35ए है जरूर, लेकिन इसका जम्मू-कश्मीर से कोई सीधा संबंध नहीं है। भारतीय संविधान में आज तक जितने भी संशोधन हुए हैं, सबका जिक्र संविधान की किताबों में है लेकिन 35ए का जिक्र कहीं भी नज़र नहीं आता।  दरअसल इसे संविधान के मुख्य भाग में नहीं बल्कि परिशिष्ट (अपेंडिक्स) में शामिल किया गया है। ये चालाकी इसलिए की गई ताकि लोगों को इसकी कम से कम जानकारी हो।
अनुच्छेद 35ए की कुछ खास बातें – 
अनुच्छेद 35ए 17 अगस्त, 1956 को लागू हुआ, जिसके बाद  जम्मू और कश्मीर के संविधान ने स्थायी निवासियों की परिभाषा दी। इसके मुताबिक 14 मई, 1954 से या 10 साल पहले से राज्य में रह रहे वे लोग, जिन्होंने राज्य की अचल सम्पत्ति क़ानूनी तरीके से प्राप्त की हो, उन्हें राज्य का स्थायी नागरिक माना जायेगा।
जम्मू- कश्मीर सरकार ही स्थायी निवासियों की परिभाषा बदल सकती है, जिसे विधानसभा के दोनों सदनों से दो-तिहाई बहुमत से पास करवाना होता है।
  • जम्मू- कश्मीर विधानसभा ने अपने संविधान में अनुभाग 51 को शामिल किया, जिसके तहत कोई भी व्यक्ति विधानसभा का सदस्य तब तक नहीं बन सकता जब तक कि वो राज्य का स्थायी निवासी न हो।
  • वो व्यक्ति जो जम्मू- कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं है, राज्य में सम्पत्ति  खरीदने का अधिकार नहीं रखता।
  • अगर कोई व्यक्ति जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं है तो वो यहां की सरकारी नौकरियों के लिये आवेदन नहीं कर सकता।
  • अगर कोई व्यक्ति जम्मू- कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं है, तो वो यहां के सरकारी विश्विद्यालयों में दाखिला नहीं ले सकता, न ही राज्य सरकार द्वारा कोई वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकता है।