गंगा तटों पर प्रवासी पक्षियों ने दी दस्तक 

0
971
हरिद्वार, इस वर्ष भी पेलिआर्कटिक क्षेत्र में शामिल मध्य एशिया, मंगोलिया, चीन, साइबेरिया व रूस के पूर्वी क्षेत्रों से आने वाले  प्रवासी पक्षियों की कुछ प्रजातियां हरिद्वार के गंगा तटों पर पहुंच चुकी हैं। गुरुकुल कांगड़ी विवि के कुलसचिव एवं अन्तर्राष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने बताया कि प्रवासी पक्षियों की कुछ प्रजातियां सुर्खाब, जल काग, ब्लैकविंग इसटिल्ट, रीवर लैपविंग, स्पॉटबिल्ड़ डक, वैगटेल यानी सुन्दर नेत्रों वाली खंजन, सैंड पाइपर, रीवर टर्न, रेड़नेप्पड़ आइबिस के समूह हरिद्वार के गंगा तटों पर पहुंच चुके हैं। वहीं टील्स व मैलार्ड का समूह जल्द पहुंचेंगे। बताया कि मानसरोवर झील से उड़ान भर चुके राजहंस के दीदार भी नवंबर अंत तक हरिद्वारवासियों को हो सकेंगे।  इस वर्ष प्रवासी पक्षी लगभग दस दिन पूर्व ही पधार चुके हैं। यह दर्शाता है की जलवायु परिवर्तन का प्रभाव प्रवासी पक्षियों के आवागमन पर भी पड़ता है।
अक्टूबर माह के अन्त में पहला जत्था जब हरिद्वार पहुंचा तो औसत तापमान 21 डिग्री सेल्सियस था जबकि विगत वर्ष में यह तापमान नवंबर के प्रथम सप्ताह में पहुचा था।
डॉ. भट्ट ने बताया की यह पक्षी अपने भौगोलिक क्षेत्र या अपने प्रजनन स्थानों जैसे साइबेरिया, रूस, कजाकिस्तान, चीन इत्यादि देशों से दीपावली के आसपास भारत भूमि में शीत ऋतु धूप सेकने और ताल तलैया में क्रीड़ा करने पहुंच जाते हैं और वसंत ऋतु में तापमान बढ़ने के साथ ही पुनः अपने में देशों पहुंचने के लिए उड़ान भरना शुरू कर देते हैं। इनकी उड़ान भी किसी विमान की उड़ान की तरह ही होती है। या यूं कहें कि इनकी उड़ान देखकर ही राइट बंधुओं ने विमानन क्षेत्र में अपना पहला प्रयोग किया था। यह प्रवासी पक्षी अपनी उड़ान विमानों की तरह एक विशेष प्रकार के फ्लाईवे के द्वारा ही तय करते हैं। मुख्यतः भारतीय उपमहाद्वीप में पहुंचने वाले पक्षी सेंट्रल एशियन फ्लाईवे का प्रयोग करते हैं।
भोजन रूपी ईंधन पाने के लिए पक्षी हरिद्वार पहुंचने से पूर्व कुछ भौगोलिक क्षेत्रों में लैंड करते हैं और पर्याप्त भोजन पाकर पुनः लंबी उड़ान भरते हैं। भारत भूमि के कुछ क्षेत्र गंगा घाटी, भरतपुर, केवलादेव नेशनल पार्क, चिल्का झील, लोकटक  झील प्रवासी पक्षियों के लिए अनुकूल माने जाते हैं किंतु फ्लाईवे में आने वाली दिक्कतों के कारण साइबेरियन क्रेन ने तो भारत आना ही छोड़ दिया है। बताया कि दरअसल कुछ भौगोलिक क्षेत्रों में हंटिंग, युद्ध, बाढ़, प्राकृतिक आपदा के कारण हजारों पक्षी प्रतिवर्ष मारे जाते हैं। यही कारण है कि अफगानिस्तान में लगातार कई वर्ष युद्ध होने के कारण साइबेरियन क्रेन विलुप्त हो गई क्योंकि यह क्रेन पक्षी अफगानिस्तान पाकिस्तान के रास्ते ही भारत पहुंचता था।
प्रवासी पक्षियों पर यह शोध कार्य हरिद्वार में मिस्सरपुर गंगा तट, भीमगोडा बैराज एवं देहरादून में आसन कंजर्वेशन रिजर्व में आने वाली प्रवासी पक्षियों की प्रजातियों पर किया जा रहा है।