उत्तराखंडः गजराज की जान पर हर समय आफत

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देहरादून,  उत्तराखंड में गजराज की जान पर किसी न किसी वजह से आफत बनी हुई है। कोई वर्ष ऐसा नहीं गुजर रहा, जिसमें इत्मीनान किया जा सके, कि हाथियों की मौत का आंकड़ा बहुत कम पर रहा हो। इस बार भी 17 हाथियों के मौत के ब्यौरे वन विभाग ने जुटाए हैं। ज्यादातर मामलों में मौत का कारण या तो एक्सीडेंट रहा है या फिर हाथी आपसी लड़ाई झगडे़ का शिकार हुए हैं।

पांच हाथियों की मौत का कारण एक्सीडेंट रहा है, इसमें रेल और अन्य कारण शामिल है। इसके अलावा, आपसी झगडे़ के कारण तीन हाथियों की मौत हो गई। प्राकृतिक मौत से भी पांच हाथियों को जान गंवानी पड़ी। वैसे, देखा जाए, तो वर्ष राज्य बनने के बाद आपसी लड़ाई में सबसे ज्यादा हाथी वर्ष 2009 में मौत का शिकार बने हैं। इस वर्ष 11 हाथियों की मौत हुई थी। वन विभाग ने जो आंकडे़ जुटाए हैं, उसमें राज्य बनने के बाद से अभी तक 416 हाथियों की मौत हो चुकी है। मौत प्राकृतिक भी रही है और अन्य कारण भी हाथी की जान पर भारी पडे़ हैं। प्रदेश के वन मंत्री हरक सिंह रावत का कहना है कि प्राकृतिक के अलावा अन्य कारणों से हाथियों की मौत के मामलों में लगातार कमी आ रही है। इस संबंध में सरकार गंभीरता से कदम उठा रही है।

19 वर्ष में सिर्फ एक हाथी बना खतरनाक

-वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, राज्य बनने के बाद अभी तक सिर्फ एक हाथी को खतरनाक घोषित करते हुए मारना पड़ा। 2008 में मानवीय जीवन के लिए खतरनाक मानते हुए एक हाथी को मौत के घाट उतारना पड़ा था। इसके अलावा, 19 वर्षों में सिर्फ दो वर्ष ऐसे गुजरे हैं, जबकि एक भी हाथी की जान एक्सीडेंट में नहीं गई। इस लिहाज से वर्ष 2002 और 2012 उल्लेखनीय रहे हैं। इसी तरह, भले ही गुलदार और अन्य जानवरों की तस्करी के लिए मौत के कई मामले सामने आते रहे हों, लेकिन हाथियों के मामले में स्थिति सुधरती जा रही है। 19 वर्ष में नौ हाथी तस्करी की वजह से मारे गए हैं। 2009 से 2017 तक का समय काबिलेगौर रहा, जबकि तस्करी में किसी भी हाथी की मौत नहीं हुई।