डीआरडीओ के खजाने में अभी और हैं घातक मिसाइलें

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ताबड़तोड़ मिसाइलों का परीक्षण किये जाने के बावजूद अभी भी भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के खजाने में कई ऐसे मिसाइल सिस्टम हैं जिनके सारे परीक्षण पूरे किये जा चुके हैं। आने वाले समय में आखिरी परीक्षण करके इन्हें सशस्त्र बलों को उपयोग के लिए सौंपा जाना है। देश के ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को पूरा करने के साथ ही यह स्वदेशी मिसाइलें चीन के साथ चल रहे गतिरोध के बीच भारत को भी रक्षा तकनीक में लगातार कामयाबी दिला रही हैं।
मैन पोर्टेबल एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (एमपीएटीजीएम)
यह तीसरी पीढ़ी की एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (एटीजीएम) नाग से निकाली गई मैन पोर्टेबल एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल है। इसका विकास भारतीय कंपनी वीईएम टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड की साझेदारी में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने किया है। एटीजीएम कम वजन वाली लंबी बेलनाकार मिसाइल है, जिसके मध्य भाग के चारों ओर चार पंखों का समूह होता है। इसे उच्च-विस्फोटक एंटी-टैंक वारहेड के साथ लगाया गया है। इस मिसाइल की लंबाई लगभग 1,300 मिमी है और वजन कम रखने के लिए एल्यूमीनियम और कार्बन फाइबर लॉन्च ट्यूब के साथ लगभग 120 मिमी का व्यास रखा गया है।
– चीन से गतिरोध के बीच भारत को मिली रक्षा तकनीक में लगातार कामयाबी 
– आखिरी परीक्षण का इन्तजार, इसके बाद सेनाएं कर सकेंगीं इस्तेमाल 
मिसाइल का कुल वजन 14.5 किलोग्राम और इसकी कमांड लॉन्च यूनिट (सीएलयू) का वजन 14.25 किलोग्राम है जो लेजर ऑल-वेदर को डिजिटल ऑल-वेदर के साथ जोड़ती है। इसकी मारक क्षमता लगभग 2.5 किमी है। इसके अब तक पांच परीक्षण किये जा चुके हैं। पहला और दूसरा परीक्षण 15 और 16 सितम्बर, 2018 को सफलतापूर्वक किया गयाइसके बाद तीसरा और चौथा सफल परीक्षण 13-14 मार्च, 2019 को राजस्थान के रेगिस्तान में किया गया। 11 सितम्बर, 2019 को आंध्र प्रदेश के कुरनूल में मिसाइल का फिर से परीक्षण किया गया। इसमें एक मैन पोर्टेबल ट्राइपॉड लांचर का उपयोग किया गया। परीक्षण का लक्ष्य एक डमी टैंक था, जिसे मिसाइल ने सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया था।
 
मिसाइल सिस्टम आकाश-1 एस  
आकाश मिसाइल मध्यम दूरी की मोबाइल सतह से हवा में मार करने वाली रक्षा प्रणाली है। यह मिसाइल प्रणाली 18 हजार मीटर तक की ऊंचाई पर 30 किमी. दूर तक विमान को निशाना बना सकती है। इसमें फाइटर जेट्स, क्रूज मिसाइलों और हवा से सतह पर मार करने वाली मिसाइलों के साथ-साथ बैलिस्टिक मिसाइलों जैसे हवाई लक्ष्यों को बेअसर करने की क्षमता है। यह भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना के साथ परिचालन सेवा में है। इस समय इसे चीन से तनाव के चलते पूर्वी लद्दाख की सीमा पर तैनात किया गया है। इसके बाद भारतीय सशस्त्र बलों की ओर से इसे अपग्रेड किये जाने की मांग की गई ताकि यह मिसाइल अपने लक्ष्य को खुद ही खोजकर उस पर सटीक निशाना लगा सके। इस पर डीआरडीओ ने मिसाइल प्रणाली को अपग्रेड करके ‘आकाश-1 एस’ नाम से पेश किया।
डीआरडीओ ने 25 और 27 मई, 2019 को एकीकृत परीक्षण रेंज (आईटीआर), चांदीपुर, ओडिशा से 25 किमी. की स्ट्राइक रेंज के साथ आकाश-1 एस का परीक्षण किया। आकाश-1 एस ने इस दौरान लगातार पांच बार कई लक्ष्यों पर सफलतापूर्वक निशाना साधकर परीक्षण पूरा किया। इसमें स्वदेशी रेंजर और मार्गदर्शन प्रणाली के समग्र प्रदर्शन के साथ 60 किलोग्राम का वारहेड ले जाने की क्षमता है। अपग्रेड होने के बाद अब आकाश-1 एस मिसाइल प्रणाली कमांड दिए गए और सक्रिय टर्मिनल को खोजकर यानी दोनों तरीके के लक्ष्यों को एक ही शॉट में मार गिराने की क्षमता रखती है। इसके बाद आकाश-II और आकाश-एनजी मिसाइलों का भी विकास किया गया है जिनकी मारक क्षमता 40-50 किमी. तक है।
क्विक रिएक्शन सरफेस-टू-एयर मिसाइल (क्यूआरएसएएम)
क्विक रिएक्शन सरफेस-टू-एयर मिसाइल सिस्टम को जून, 2020 में पूर्वी लद्दाख में तैनात किया गया है। इसे डीआरडीओ ने भारतीय सेना के लिए भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और भारत डायनेमिक्स लिमिटेड के सहयोग से तैयार किया है। हर मौसम में सतह से हवा में मार करने वाली इस मिसाइल को एयरक्राफ्ट रडार से जाम नहीं किया जा सकता क्योंकि यह इलेक्ट्रॉनिक काउंटर उपायों से लैस है। कनस्तर में रखी जाने वाली इस मिसाइल को ट्रक पर रखा जा सकता है। क्यूआरएसएएम ठोस-ईंधन प्रणोदक का उपयोग करता है और इसकी रेंज 25-30 किमी है। यह मिसाइल दो-तरफ़ा डेटा लिंक और एक मिडकोर्स इनरट्रियल नेविगेशन प्रणाली से लैस है। इसका सिस्टम चलते समय लक्ष्य को खोजने और ट्रैक करने की क्षमता रखता है। क्यूआरएसएएम एक कॉम्पैक्ट मोबाइल हथियार प्रणाली है जिसमें पूरी तरह से स्वचालित कमांड और कंट्रोल सिस्टम है।
मिसाइल प्रणाली में चार दीवार वाले दो रडार शामिल हैं, जिनमें लांचर के अलावा बैटरी निगरानी रडार और बैटरी बहुक्रिया रडार हैं यानी इसमें 360 डिग्री कवरेज शामिल है। मिसाइल का पहला परीक्षण 4 जून, 2017 को हुआ था। इसके बाद 3 जुलाई, 2017 को दूसरा सफल परीक्षण ओडिशा के चांदीपुर से किया गया था। तीसरा परीक्षण 22 दिसम्बर को, चौथा 8 अक्टूबर, 2018 को, पांचवां परीक्षण 26 फरवरी, 2019 को सफलतापूर्वक किया गया। छठा परीक्षण 4 अगस्त, 2019 को पूर्वाह्न 11:05 बजे चांदीपुर स्थित इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज के लॉन्च कॉम्प्लेक्स -3 में एक मोबाइल ट्रक-आधारित लॉन्चर से किया गया था। सातवां परीक्षण 23 दिसम्बर, 2019 को एकीकृत परीक्षण रेंज (आईटीआर) से हुआ, जिसमें मिसाइल के दो फायरिंग शामिल थे। इस परीक्षण के साथ मिसाइल के विकास को पूर्ण घोषित किया गया।
ध्रुवस्त्र हेलीना एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल
हेलीकॉप्टर से लॉन्च की गई नाग मिसाइल की रेंज बढ़ाकर इसे ध्रुवस्त्र हेलीना मिसाइल का नाम दिया गया है। इसे एचएएल के रुद्र और लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टरों पर ट्विन-ट्यूब स्टब विंग-माउंटेड लॉन्चर से लॉन्च किया गया है। इसकी संरचना नाग मिसाइल से अलग है। मिसाइल का लॉक ऑन चेक करने के लिए 2011 में पहली बार एक लक्ष्य पर लॉक करके लॉन्च किया गया। उड़ान के दौरान हिट करने के लिए दूसरा लक्ष्य दिया गया जिसे मिसाइल ने नष्ट कर दिया। इस तरह मिसाइल ने उड़ान में रहते हुए अचानक बदले गए लक्ष्य को मारने की क्षमता का प्रदर्शन किया। 13 जुलाई, 2015 को एचएएल ने तीन परीक्षण जैसलमेर, राजस्थान की चांधन फायरिंग रेंज में रुद्र हेलीकॉप्टर से किये। मिसाइलों ने 7 किलोमीटर की दूरी पर दो लक्ष्य मार गिराने में कामयाबी हासिल की, जबकि एक का निशाना चूक गया।
ध्रुवस्त्र हेलीना मिसाइल का एक और परीक्षण 19 अगस्त, 2018 को पोखरण परीक्षण रेंज में एचएएल एलसीएच से सफलतापूर्वक किया गया। इसके बाद नवम्बर, 2018 में हेलिना के उन्नत संस्करण का सफल परीक्षण पोखरण में परीक्षण किया गया। मिसाइल का उन्नत संस्करण 15-20 किमी तक मार करने में सक्षम है। डीआरडीओ और भारतीय सेना ने अधिकतम मिसाइल रेंज और सटीकता की जांच करने के लिए 8 फरवरी , 2019 को ओडिशा के चांदीपुर में एकीकृत परीक्षण रेंज से 7-8 किमी की दूरी के साथ हेलिना का परीक्षण किया। ग्राउंड आधारित लांचर से बालासोर (ओडिशा) में 15 से 16 जुलाई, 2020 तक तीन विकासात्मक उड़ान परीक्षण किए गए हैं। अब यह मिसाइल सीधे और शीर्ष हमले के मोड में है, जो नई सुविधाओं के साथ उन्नत है।