गौरा देवी की भूमि में प्रकृति के तांडव से उठे सवाल

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गौरा देवी
पर्यावरण की लड़ाई को चिपको आंदोलन के माध्यम से धार देने वालीं गौरा देवी के रैणी गांव से प्रकृति के तांडव की जो खबरें निकली हैं, उन्होंने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है। चमोली जिले के इस इलाके में बहुत कम फासले पर दो-दो पावर प्रोजेक्ट होने पर अब नए सिरे से बहस शुरू हो गई है। ऋषिगंगा और एनटीपीसी के तपोवन प्रोजेक्ट दोनों ही प्रकृति के कहर से इस बार बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। 2013 की आपदा में भी इन दोनों ही प्रोजेक्ट को नुकसान हुआ था। इस बार तय है कि नुकसान ज्यादा और बड़ा होगा।
-ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट का होता रहा है शुरू से विरोध
-बहुत कम दूरी पर स्थित हैं ऋषिगंगा और तपोवन प्रोजेक्ट
रैणी गांव की पहचान पर्यावरण संरक्षण के शानदार और अनूठे चिपको आंदोलन के लिए है। जंगलों के ठेकेदार जब वहां पर पेड़ काटने पहुंचे थे तब स्थानीय महिला गौरा देवी की अगुवाई में तमाम महिलाएं पेड़ों पर चिपक गई थीं और चेतावनी दी थी कि पेड़ काटने से पहले उन्हें काटना होगा। पेड़ पर चिपककर पेड़ और जंगल को बचाने का यह अभियान चिपको आंदोलन के रूप में पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हुआ। पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट बाद में इस आंदोलन को और आगे तक ले गए।
ग्लेशियर टूटने से आई बाढ़ से सबसे बुरी तरह से ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट प्रभावित हुआ है, जिसकी बिजली उत्पादन की क्षमता 13 मेगावाट है। इस प्रोजेक्ट का स्थानीय लोगों ने काफी विरोध किया है। खूब आंदोलन हुए हैं। यह प्रोजेक्ट 2011 में स्वीकृत हुआ था, लेकिन 2016 में प्रोजेक्ट के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण यहां पर बिजली उत्पादन बंद हो गया था। प्रोजेक्ट पिछले साल जून में दोबारा चालू हुआ था। इससे पहले, 2013 की आपदा में भी इसे नुकसान हुआ था। तपोवन में धौलीगंगा पर स्थित एनटीपीसी का पावर प्रोजेक्ट की बात करें तो यह ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट के मुकाबले काफी ज्यादा क्षमता का है। इससे 520 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इसका निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है। प्राकृतिक आपदा की मार के बाद एनटीपीसी का यह महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट एक बार फिर काफी पीछे चला गया है।