नैनी झील के जलस्तर में चिंताजनक गिरावट आने लगी है। हालांकि राज्य बनने के बाद से ही नैनी झील का जलस्तर गर्मियों में औसत से काफी नीचे जाने लगा है। इसमें सुधार लाने के लिए स्थानीय प्रशासन ने 2017 के बाद से झील के जलस्तर को बनाए रखने के लिए वर्ष भर पेयजल की आपूर्ति में कटौती कर दी है। इस समय नगर वासियों को सुबह-शाम एक-एक घंटे ही पानी दिया जा रहा है।
इस बार चिंताजनक यह है कि झील का पानी कम होने का सिलसिला सर्दियों से ही शुरू हो गया था। पिछले चार माह में झील का जलस्तर औसत से साढ़े पांच फीट से ज्यादा नीचे चला गया है। फरवरी के आखिरी हफ्ते से तो झील का पानी साफतौर पर उतरता हुआ दिखाई दे रहा है। पर्यावरणविद् प्रो. अजय रावत के अनुसार इन स्थितियों के निम्न कारण नजर आ रहे हैं-
कारण
नैनी झील में पानी नैनीताल शहर से रिसकर और बारिश से सीधे आता है। झील के चारों ओर पक्के निर्माण बढ़ने से बारिश का पानी तत्काल ही बहकर निकल जाता है। इस वजह से बरसात का पानी रिसकर वर्ष भर झील को रिचार्ज नहीं करने की अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पाता है। नैनीताल में कभी ‘शेर का डांडा’ जैसी संवेदनशील चोटियों से घास काटने तक की मनाही थी। अब वहां पर पक्के निर्माण हैं। नैनी झील को सर्वाधिक 77 फीसद पानी देने वाली सूखाताल झील में भी अतिक्रमण हो चुका है। यह जरूर है कि प्रदेश सरकार ने सूखाताल के पुर्नजीवन के लिए बड़ी योजना की घोषणा की है। नैनीताल में बढ़ती आबादी व सैलानियों की आमद से पानी की बढ़ती खपत भी नैनी झील के जलस्तर को गिराने में बड़ी भूमिका निभा रहा है।
नैनी झील किसी बांध या पानी के टैंक की तरह नहीं है। किसी भी तालाब या प्राकृतिक झील की अपनी एक जल संशोधन पद्धति और अपना एक पारिस्थितिकी तंत्र व जैवीय चक्र भी होता है। इसी से यह लगातार गतिमान भी रखती है। इसमें किसी भी तरह की मानवीय छेड़छाड़ दूरगामी प्रभाव डालती है। नैनी झील के चारों ओर के पहाड़ों के जंगलों में भी बड़े स्तर पर बदलाव आया है। यहां पर पहले बांज के पेड़ बहुतायत में हुआ करते थे जो बारिश के पानी को रोकने का काम करते थे। यही पानी बरसात का मौसम बीत जीने के बाद झील में रिसकर पहुंचता था। अब इन जंगलों के ज्यादातर पेड़ बूढ़े हो चुके हैं और नए पेड़ पैदा नहीं हो पा रहे हैं। जो पेड़ सूख गए हैं, उनकी जगह उस अनुपात में नए पेड़ नहीं लगाए गए हैं। जो पेड़ लगे हैं, वे यहां की पारिस्थितिकी या जरूरत के हिसाब से नहीं लगाए गए हैं। इसलिए झील के बाहरी पर्यावरण का चक्र भी बदल गया है। बूढ़े पेड़ों को जिंदा रहने के लिए पानी तो अधिक चाहिए होता है। इसलिए वे अपने आसपास मौजूद पानी से स्रोत यानी झील से पानी खींच रहे हैं। इस प्रकार नैनी झील का जो वॉटर रिचार्ज प्रोसेस था, अब वह डिस्चार्ज प्रोसेस बनकर रह गया है।
नैनी झील में बीती बरसात में जलस्तर रिकॉर्ड लेवल औसत से 11 फीट ऊपर तक पहुंच गया था। इसने पिछले तीस सालों का रिकॉर्ड भी तोड़ा था और बरसात खत्म होने के बाद से ही जलस्तर घटता जा रहा है। यानी झील केवल बरसात के पानी पर निर्भर होकर रह गई है। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार नैनी झील को इसकी जरूरत का केवल 13 फीसदी पानी बारिश से मिलता है, जबकि करीब 77 फीसदी पानी सूखाताल से मिलता रहा है। नैनीताल में होने वाली बारिश का ज्यादातर हिस्सा मानसून के सीजन में जरूर आता है पर सर्दियों की बारिश भी नैनी झील के जलस्तर को बनाए रखने में मदद करती है। लेकिन इस वर्ष शीतकालीन वर्षा का न होना भी नैनी झील के जलस्तर के तेजी से गिरने का एक बड़ा कारण है। इसके अलावा नैनी झील के पानी के सीवर के रूप में बाहर चला जाना भी बड़ा कारण है। इसका शुद्धीकरण कर पेयजल के इतर अन्य कार्यों में उपयोग किये जाने की भी आवश्यकता जताई जा रही है।