होम्योपैथी के जनक माने जाने वाले जर्मन मूल के डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन के जन्मदिवस के अवसर पर प्रतिवर्ष 10 अप्रैल को दुनियाभर में ‘विश्व होम्योपैथी दिवस’ मनाया जाता है। डॉ. हैनीमैन जर्मनी के विख्यात डॉक्टर थे, जिनका जन्म 10 अप्रैल 1755 को और निधन 2 जुलाई 1843 को हुआ था। डॉ. हैनीमैन चिकित्सक होने के साथ-साथ एक महान विद्वान, शोधकर्ता, भाषाविद और उत्कृष्ट वैज्ञानिक भी थे, जिनके पास एमडी की डिग्री थी लेकिन उन्होंने बाद में अनुवादक के रूप में कार्य करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी थी। उसके बाद उन्होंने अंग्रेजी, फ्रांसीसी, इतालवी, ग्रीक, लैटिन इत्यादि कई भाषाओं में चिकित्सा, वैज्ञानिक पाठ्य पुस्तकों को सीखा। होम्योपैथी एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है, जो औषधियों तथा उनके अनुप्रयोग पर आधारित है। होम्योपैथी को आधार बनाने के सिद्धांत से चिकित्सा विज्ञान की एक पूरी प्रणाली को प्राप्त करने का श्रेय डॉ. हैनीमैन को ही जाता है। इसीलिए उनके जन्मदिवस को ‘विश्व होम्योपैथी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का उद्देश्य चिकित्सा की इस अलग प्रणाली के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करना है।
विश्व होम्योपैथी दिवस के अवसर पर इस वर्ष डॉ. हैनीमैन की 266वीं जयंती मनाई जा रही है। इसके आयोजन का प्रमुख उद्देश्य भारत सहित दुनियाभर में होम्योपैथी औषधियों की सुरक्षा, गुणवत्ता और प्रभावकारिता को मजबूत करना, होम्योपैथी को आगे ले जाने की चुनौतियों और भविष्य की रणनीतियों को समझना, राष्ट्रीय नीतियों के विकास की रणनीति तैयार करना, अंतरपद्धति एवं अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान सहयोग, उच्चस्तरीय गुणवत्तापरक चिकित्सा शिक्षा, प्रमाण आधारित चिकित्सा कार्य और विभिन्न देशों में होम्योपैथी को स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में समुचित स्थान दिलाकर सार्वभौमिक स्वास्थ्य के लक्ष्य को प्राप्त करना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी मानना है कि वैकल्पिक और परम्परागत औषधियों को बढ़ावा दिए बगैर सार्वभौमिक स्वास्थ्य के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में विश्व में होम्योपैथी का प्रमुख स्थान है।
एलोपैथ, आयुर्वेद तथा प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों की भांति होम्योपैथी की भी कुछ अलग विशेषताएं हैं और इन्हीं विशेषताओं के कारण आज होम्योपैथी विश्वभर में सौ से भी अधिक देशों में अपनाई जा रही है तथा भारत तो होम्योपैथी के क्षेत्र में विश्व का अग्रणी देश है। दरअसल होम्योपैथी दवाओं को विभिन्न संक्रमित और गैर संक्रमित बीमारियों के अलावा बच्चों और महिलाओं की बीमारियों में भी विशेष रूप से प्रभावी माना जाता है। हालांकि होम्योपैथिक दवाओं के बारे में धारणा है कि इन दवाओं का असर रोगी पर धीरे-धीरे होता है लेकिन इस चिकित्सा प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह रोगों को जड़ से दूर करती है और इन दवाओं के साइड इफेक्ट भी नहीं के बराबर होते हैं। होम्योपैथी दवाएं प्रत्येक व्यक्ति पर अलग तरीके से काम करती है और अलग-अलग व्यक्तियों पर इनका असर भी अलग ही होता है। होम्योपैथी चिकित्सकों की मानें तो डायरिया, सर्दी-जुकाम, बुखार जैसी बीमारियों में होम्योपैथी दवाएं एलोपैथी दवाओं की ही भांति तीव्रता से काम करती हैं लेकिन अस्थमा, गठिया, त्वचा रोगों इत्यादि को ठीक करने में ये दवाएं काफी समय तो लेती हैं मगर इन रोगों को जड़ से खत्म कर देती हैं। विभिन्न शोधों के अनुसार कार्डियोवैस्कुलर बीमारी की रोकथाम, मैमोरी पावर बढ़ाने, उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने तथा ऐसी ही कुछ अन्य बीमारियों में होम्योपैथी दवाएं अन्य दवाओं की तुलना में ज्यादा कारगर होती हैं। होम्योपैथी के बारे में सरदार वल्लभभाई पटेल का कहना था कि होम्योपैथी को चमत्कार के रूप में माना जाता है।
भारत में होम्योपैथी केन्द्रीय परिषद अधिनियम, 1973 के तहत होम्योपैथिक चिकित्सा प्रणाली एक मान्यता प्राप्त चिकित्सा प्रणाली है, जिसे दवाओं की राष्ट्रीय प्रणाली के रूप में मान्यता प्राप्त है। केन्द्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद (सीसीआरएच) आयुष मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त अनुसंधान संगठन है, जो होम्योपैथी में समन्वय, विकास, प्रसार और वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देता है। 30 मार्च 1978 को इसका गठन आयुष विभाग, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एक स्वायत्त संगठन के रूप में किया गया था। सीसीआरएच अनुसंधान कार्यक्रम और परियोजनाएं बनाती तथा चलाती है और होम्योपैथी के मौलिक एवं अनुप्रयुक्त पहलुओं में साक्ष्य आधारित अनुसंधान करने के लिए राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय उत्कृष्ट संस्थानों के साथ सहयोग करती है। केन्द्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद के अनुसार चिकित्सा का ही एक वैकल्पिक रूप है होम्योपैथी, जो ‘समः समम् शमयति’ अथवा ‘समरूपता’ दवा सिद्धांत पर आधारित है, जो दवाओं द्वारा रोगी का उपचार करने की ऐसी विधि है, जिसमें किसी स्वस्थ व्यक्ति में प्राकृतिक रोग का अनुरूपण करके समान लक्षण उत्पन्न किया जाता है, जिससे रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार किया जा सकता है। इस पद्धति में रोगियों का उपचार समग्र दृष्टिकोण के अलावा रोगी की व्यक्तिवादी विशेषताओं को अच्छी प्रकार से समझकर किया जाता है।
देश में प्रतिवर्ष केन्द्रीय आयुष मंत्रालय होम्योपैथी दिवस की थीम निर्धारित करता है और देशभर में यह विशेष दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस साल की थीम है ‘होम्योपैथी: द अल्टीमेट ग्रीन मेडिसिन’। भारत में होम्योपैथी सबसे लोकप्रिय चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। देशभर में 210 से ज्यादा होम्योपैथी अस्पताल, 8 हजार से ज्यादा होम्योपैथी डिस्पेंसरी और करीब तीन लाख होम्योपैथी प्रैक्टिशनर हैं। भारत में आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के तत्वावधान में विश्व होम्योपैथी दिवस मनाया जाता है। आयुष (AYUSH) के अलग-अलग अंग्रेजी अक्षरों का पूरा अर्थ है आयुर्वेद, योग और नेचुरोपैथी, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी। आयुष का वास्तव में चिकित्सा सेवाओं के बीच महत्वपूर्ण स्थान है। इनमें होम्योपैथी को एक वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में जाना जाता है। दिखने में भले ही होम्योपैथी दवाएं एक जैसी लगती है किन्तु वास्तव में विश्वभर में होम्योपैथी की 4000 से भी ज्यादा तरह की दवाएं हैं।
होम्योपैथी के संस्थापक माने जाने वाले सैमुअल हैनीमैन का कहना था कि इलाज का उच्चतम आदर्श सबसे भरोसेमंद और कम से कम हानिकारक तरीके से स्वास्थ्य की तेज, कोमल और स्थायी बहाली है। चूंकि बहुत सारी होम्योपैथी दवाओं का असर रोगी पर कुछ धीमी गति से होता है जबकि एलोपैथी दवाएं रोगी पर तुरंत असर दिखाती हैं, इसीलिए हाम्योपैथी भले ही एलोपैथी जितनी लोकप्रिय नहीं है लेकिन दुनियाभर में यह उपचार के सबसे लोकप्रिय वैकल्पिक रूप में मौजूद हैं। दरअसल होम्योपैथिक उपचार सबसे सरल उपचार है, जो शरीर को अधिक प्राकृतिक उपचार प्रक्रिया की अनुमति देता है। होम्योपैथी दवाएं चिकित्सा का एक सुरक्षित और प्राकृतिक विकल्प प्रदान करती हैं, जो बिना किसी दुष्प्रभाव अथवा दवा के परस्पर क्रिया का कारण बनता है। सही मायनों में होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति सस्ती कीमत पर चमत्कार करती है। होम्योपैथिक दवाएं कम लागत वाली बेहद प्रभावी और रुचिकर होती हैं, जिनका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता और इनका आसानी से सेवन किया जा सकता है।