उत्तराखंड: कांग्रेस की त्रिमूर्ति ठोकेगी खम या निकलेगा अरमानों का दम

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गोदियाल

उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव के लिए अब एक-एक दिन, एक-एक पल कीमती है, लेकिन कांग्रेस की त्रिमूर्ति हरीश रावत, हरक सिंह रावत और किशोर उपाध्याय के चुनाव लड़ने को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है। तीनों नेता ऊपरी तौर पर भले ही कुछ कहें, लेकिन तीनों ही चुनाव लड़ने के पक्ष में हैं। इसकी वजह साफ है। तीनों नेता जानते हैं कि सत्ता में असली भागीदारी के लिए सदन में होना बहुत जरूरी है।

सबसे पहले, कांग्रेस के सबसे अहम चेहरे हरीश रावत की बात करें। वे वर्ष 2017 में दो-दो सीट हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा से हार जाने के बाद हरीश रावत इस बार फिर रामनगर से चुनावी मैदान में उतर रहे हैं। हरीश रावत जानते हैं कि बिना चुनाव लडे़ और जीते, वह कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री पद के लिए मजबूत दावेदारी नहीं कर पाएंगे। सरकार बनाने के लिए आतुर दिख रहा कांग्रेस का हाईकमान भी एक-एक सीट को अनमोल मानते हुए चल रहा है। इसलिए वह भी यह चाहता है कि हरीश रावत चुनाव लडे़ं और जीतकर सदन में पहुंचे। मुख्यमंत्री का फैसला बाद की बात होगी, पहले सरकार बन जाए।

हरक सिंह रावत जब तक भाजपा में थे, तब भी और अब जबकि कांग्रेस का हिस्सा हैं, तब भी एक नहीं, कम से कम दो सीटें अपने लिए चाहते हैं। एक में खुद लडे़ंगे और दूसरी से बहू अनुकृति को चुनाव मैदान में उतारेंगे। हालांकि भाजपा ने उन्हें निष्कासित करके मोल भाव करने लायक नहीं रहने दिया है। कांग्रेस ने लैंसडाउन से उनकी बहू को टिकट दिया है। इसके अलावा, हरक सिंह रावत खुद ऐसी सीट से चुनाव लडे़ं, जो कि कांग्रेस के लिए अभेद्य बनी हुई हो। इस क्रम में कांग्रेस नेतृत्व की नजरें डोईवाला के बाद अब चौबट्टाखाल की तरफ केंद्रित हो गई हैं, जहां पर भाजपा के भारी भरकम उम्मीदवार सतपाल महाराज हैं।

कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और एनडी सरकार में मंत्री रहे किशोर उपाध्याय की स्थिति भरपूर रहस्यों से भरी नजर आ रही है। वह चुनाव लडे़ंगे या नहीं, यह सवाल है। कांग्रेस से लडे़ंगे या नहीं, यह दूसरा सवाल है और टिहरी से लडे़ंगे या नहीं, ये तीसरा सवाल है। दरअसल, किशोर के भाजपा में शामिल होने की अटकलें लगातार बनी हुई हैं और इन पर विराम नहीं लग पा रहा है। टिहरी सीट से भाजपा के निवर्तमान विधायक धन सिंह नेगी के टिकट को होल्ड पर रखे जाने की एक वजह किशोर उपाध्याय को भी माना जा रहा है। इन स्थितियों के बीच, 28 जनवरी से पहले ही सारी बातें साफ हो जानी हैं, क्योंकि नामांकन की यह आखिरी तारीख है।

ऐसे में कांग्रेस की त्रिमूर्ति विधानसभा चुनाव में किस रूप में नजर आती है, इस पर भी सभी की निगाहें होंगी। वह चुनाव मैदान में खम ठोकती नजर आती हैं या फिर पार्टी के रणनीतिक फैसलों की वजह से उनके अरमानों का दम निकलता है, यह देखना भी दिलचस्प होगा।