एक विधानसभा सीट जिसका प्रतिनिधित्व हमेशा मातृ शक्ति ने किया

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उत्तराखंड
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उत्तराखंड, खासकर पहाड़ों में महिलाएं आर्थिकी की रीढ़ मानी जाती हैं। सिर्फ आर्थिकी ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र के केंद्र में भी महिलाएं ही हैं। चिपको आंदोलन से लेकर अलग राज्य की मांग जैसे कई आंदोलनों का इन्होंने नेतृत्व किया। पुरुषों की तुलना में ये अभी तक बढ़-चढ़कर मतदान भी करती आयी हैं। फिर भी राजनीति में प्रदेश की महिलों की भूमिका उत्साहवर्द्धक नहीं है। ऐसे माहौल में भी प्रदेश में एक ऐसी विधानसभा सीट है, जिसका प्रतिनिधित्व अभी तक मातृ शक्ति के हाथों में ही रहा है।

अन्य प्रदेशों में शायद ही कोई ऐसी विधानसभा सीट हो, जहां का प्रतिनिधित्व हमेशा महिलाओं के हाथ में रहा हो। उत्तराखंड में ऐसा है। पौड़ी जिले के यमकेश्वर विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व अभी तक महिलाएं करती आ रही हैं। यहां से अभी तक किसी पुरुष उम्मीदवार को जीत हासिल नहीं हो पायी है। कहें कि यहां हमेशा से महिलाओं का राज रहा है तो वह गलत नहीं होगा। ऐसा भी नहीं है कि यहां महिला मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। पुरुष मतदाताओं की संख्या यहां ज्यादा है।

इस चुनाव में यहां कुल मतदाता 90 हजार,638 हैं। इनमें से पुरुष मतदाता 48 हजार,563 हैं, तो महिला मतदाताओं की संख्या 42 हजार,075 है। इसके बावजूद यहां महिलाओं की जीत दर्ज होती रही है। खास बात यह कि इस सीट पर कभी कमल मुरझाया नहीं है। यहां हमेशा से भाजपा के उम्मीदवार जीतती रही हैं। पहले के तीन चुनावों यानी 2002 से 2012 तक भाजपा नेता विजया बड़थ्वाल इस सीट से जीत हासिल करती रहीं हैं। बड़थ्वाल ने पहले चुनाव में कांग्रेस की सरोजिनी कैंतुरा को एक हजार,447 मतों के अंतर से हराया था। फिर 2007 में उन्होंने कांग्रेस की रेणु बिष्ट को दो हजार,841 मतों से हराया। तीसरी बार 2012 के चुनाव में उन्होंने फिर से कांग्रेस की सरोजिनी को तीन हजार,541 वोटों के अंतर हराया।

बड़थ्वाल 2007 से 2012 तक बीसी खंडूरी और रमेश पोखरियाल निशंक की सरकारों में कैबिनेट मंत्री भी रहीं हैं। प्रदेश की अन्य सीटों की तरह यहां भी मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच ही होता रही है। ऐसे में कुछ लोगों का मानना है कि भाजपा-कांग्रेस दोनों महिला उम्मीदवारों को ही यहां से उतारती रही हैं, इसलिए महिलाएं ही चुनाव जीतती हैं। ऐसे लोगों को क्षेत्र की जनता ने पिछले चुनाव में जवाब दे दिया। पिछले चुनाव में पार्टी ने विजय बड़थ्वाल के बदले ऋतु खंडूरी को मैदान में उतारा। कांग्रेस ने पहली बार महिला के बदले एक पुरुष उम्मीदवार को यहां से टिकट दिया।

कांग्रेस ने कोटद्वार से भाजपा के कद्दावर नेता रहे शैलेन्द्र सिंह रावत को पार्टी में शामिल कर उन्हें इस सीट से मैदान में उतारा। दरअसल, पिछले चुनाव में कोटद्वार से शैलेन्द्र सिंह रावत का टिकट काटकर भाजपा ने हरक सिंह रावत को उतारा था। इससे शैलेन्द्र सिंह पार्टी से नाराज हो गए थे। तब कांग्रेस ने उन्हें यमकेश्वर से अपना उम्मीदवार बनाया था। भाजपा-कांग्रेस के बीच मुकाबला होने के बावजूद पिछले चुनाव में भाजपा का मुकाबला निर्दलीय उम्मीदवार रेनू बिष्ट से हुआ। ऋतू खंडूरी ने रेनू बिष्ट को लगभग नौ हजार वोटों से हराया था। उस चुनाव में कांग्रेस तीसरे नंबर पर चली गयी थी।

इस तरह से देखा जाये तो यमकेश्वर सीट पर हमेशा प्रथम और दूसरे स्थान पर महिला उम्मीदवार ही रही हैं। भाजपा ने इस बार रेनू बिष्ट को अपना उम्मीदवार बनाया है। रेनू बिष्ट 2007 से चुनाव लड़ती आ रही हैं। 2007 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ीं, तो 2012 उत्तराखंड रक्षा मोर्चा से मैदान में उतरीं। पिछला चुनाव इन्होंने निर्दलीय लड़ा और दूसरे स्थान पर रहीं। बिष्ट के सामने इस बार फिर कांग्रेस से शैलेन्द्र सिंह रावत हैं। उनके अलावा छह अन्य पुरुष उम्मीदवार यहां से चुनावी मैदान में हैं। अगर रेनू बिष्ट यह चुनाव जीत जाती हैं तो यमकेश्वर को महिलाओं के गढ़ के रूप में पहचान मिल जाएगी।

रेनू बिष्ट से इस मुद्दे पर कहती हैं, ‘मातृ शक्ति के रूप में इस सीट की पहचान बरकरार रहेगी। यहां की मिट्टी मेरे लिए देवता है। मैं बेशक यहां से चुनाव हारती रही हूं लेकिन मुझे हमेशा लोगों ने भरपूर समर्थन दिया है। इस बार फिर क्षेत्र की जनता अपनी मातृ शक्ति को ही यहां से विधानसभा भेजेगी।