उत्तराखंड : नैनीताल के देवस्थल में शुरू हुई दुनिया की सबसे बड़ी व्यास की आईएलएम दूरबीन

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नैनीताल के आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान के नाम खगोल विज्ञान के क्षेत्र में गुरुवार को एक बड़ी ऐतिहासिक उपलब्धि जुड़ गई है। जनपद के देवस्थल में दुनिया की सर्वाधिक बड़ी 4 मीटर यानी एक बड़े कमरे जितने व्यास की पहली आईएलएमटी यानी इंटरनेशनल लिक्विड मिरर टेलिस्कोप स्थापित हो गई है। यह जानकारी आज एरीज के निदेशक प्रो. दीपांकर बनर्जी ने पत्रकार वार्ता में दी।

एरीज के निदेशक प्रो. बनर्जी ने बताया कि अपने नाम के अनुरूप आईएलएमटी दूरबीन मरकरी यानी पारे के तरल लेंस से बनी है। यह दूरबीन पांच देशों-भारत, बेल्जियम, कनाडा, पोलैंड और उज्बेकिस्तान की साझा परियोजना के तहत 50 करोड़ की लागत से स्थापित की गई है। इसके बारे में बताया गया है कि दूरबीन ने पहले चरण में ही हजारों प्रकाश वर्ष दूर की आकाशगंगा और तारों की तस्वीरें लेकर कीर्तिमान भी स्थापित कर दिया है।

निदेशक प्रो. बनर्जी ने बताया कि एरीज नैनीताल से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर देवस्थल नामक स्थान पर है। उन्होंने उम्मीद जताई कि यहां पर इस दूरबीन के स्थापित होने से एरीज अंतरिक्ष के बड़े-अबूझ रहस्यों को समझने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल करने में सक्षम होगा। उन्होंने बताया कि वर्ष 2017 में इसका निर्माण कार्य शुरू किया गया था। इसके निर्माण में पाल हिक्सन जैसे दुनिया के प्रसिद्ध विशेषज्ञों की मदद ली गई। इससे पहले चरण में ही 95 हजार प्रकाश वर्ष दूर एनजीसी 4274 आकाशगंगा की स्पष्ट तस्वीर लेकर कीर्तिमान स्थापित किया गया है। इसके अलावा अपनी आकाशगंगा मिल्की-वे के तारों को भी स्पष्ट रूप से कैमरे में कैद किया गया है।

उन्होंने बताया कि एरीज के पास 3.6 मीटर की ऑप्टिकल दूरबीन भी देवस्थल में मौजूद है। इन दोनों दूरबीनों से आसमान में होने वाली गतिविधियों की दोतरफा पुष्टि की जा सकती है और एक ही स्थान से सटीक जानकारी जुटाई जा सकती है।

एरीज के वरिष्ठ खगोल विज्ञानी डा. शशिभूषण पांडेय ने बताया कि इस दूरबीन से बृहद डेटा भी एकत्र किया जा सकेगा। डा. कुंतल मिश्रा ने दूरबीन के निर्माण और खूबियों से संबंधित जानकारी दी। डा. बृजेश कुमार ने तकनीक और भविष्य में होने वाले शोध के बारे में जानकारी दी। डा. वीरेंद्र यादव ने दूरबीनों के प्रयोग और एरीज की सुविधाओं से संबंध में बताया। उन्होंने बताया कि इस दूरबीन से अंतरिक्ष में होने वाले दो वस्तुओं के बीच के ट्रांजिट यानी पारगमन का सटीक डाटा मिल सकेगा। साथ ही बड़े तारों में होने वाले सुपरनोवा विस्फोटों और आकाशगंगाओं के आकार में होने वाले परिवर्तन, यूएफओ व आकाश में उड़ने वाली वस्तुओं के अलावा उल्कावृष्टि जैसी घटनाओं को कैमरे में कैद करने के साथ नए ग्रहों नक्षत्रों को खोजा जा सकेगा। साथ ही यह किसी भी तारे के घनत्व, तापमान व अन्य बारीक जानकारी जुटाने में मददगार साबित होंगी।