रस्म से बड़ा रिश्ता

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रिश्ता यदि दिल से जुड़ा हो तो वह खून के रिश्ते से भी बढ़ा हो जाता है। अपनी मुंह बोली ताई का अंतिम संस्कार कर के रामनगर की एक बेटी ने ऐसी ही मिसाल पेश की है। बीमारी के दौरान इलाज व देखभाल के साथ-साथ भतीजी आशा ने सगे बेटे जैसा फर्ज निभाया। पुरुष प्रधान समाज की वर्जनाओं को तोड़ वह न केवल श्मशान घाट तक पहुंची बल्कि चिता को मुखाग्नि देकर अपना फर्ज अदा किया।

पीरूमदारा निवासी 60 वर्षीय रामवती काफी समय से बीमार चल रही थीं। उनके पति अतिराज सिंह का काफी समय पहले देहांत हो गया था। कोई संतान न होने के कारण वह छोई निवासी आशा आर्य को अपनी भतीजी मानती थीं।

इधर कुछ समय से बीमार होने के बाद से आशा ने ही उनकी देखभाल की। रविवार को रामवती की मौत हो गई। शाहजहांपुर से उनके रिश्तेदार भी यहां पहुंच गए थे। अंतिम संस्कार किए जाने की इच्छा उनके रिश्तेदारों ने जताई। इस पर आशा का तर्क था कि बीमारी के दौरान वह उसे रामनगर, मुरादाबाद, बरेली आदि स्थानों पर इलाज के लिए ले गई थी। ताई की भी अंतिम इच्छा यही थी कि वही उसका अंतिम संस्कार करे।

काफी देर तक इस मामले में असमंजस की स्थिति बनी रही। बाद में सभी ने तय किया कि अंतिम संस्कार आशा ही करेगी। रिश्तेदारों के अनुरोध पर रामवती की शाहजहांपुर से आई भतीजी अनीता ने भी चिता को अग्नि दी। श्मशान घाट पर मुंह बोली भतीजी द्वारा अंतिम संस्कार किए जाने पर लोगों का कहना था कि आशा ने सगे बेटे से भी बढ़कर फर्ज निभाया है।