देवभूमि उत्तराखंड प्रदेश के अधिकांश पर्वतीय क्षेत्रों के साथ कुमाऊं अंचल में आज शनिवार को होली यानी छलड़ी मनाई जा रही है। यहाँ रामलीलाओं की तरह राग व फाग का त्योहार होली भी अलग वैशिष्ट्य के साथ मनाई जाती हैं। यूं कुमाऊं में होली के दो प्रमुख रूप मिलते हैं, बैठकी व खड़ी होली, परन्तु अब दोनों के मिश्रण के रूप में तीसरा रूप भी उभर कर आ रहा है। इसे धूम की होली कहा जाता है। इनके साथ ही महिला होलियां भी अपना अलग स्वरूप बनाऐ हुऐ हैं। इन सब के बीच परंपरागत कुमाउनी होली में रंगों से अधिक, रागों में भी होली के विविध ‘रंग’ उड़ते हैं। माना जाता है कि प्राचीनकाल में यहां के राजदरबारों में बाहर के गायकों के आने से राग-रागिनियों पर आधारित यह होली गीत यहां आऐ हैं। इनमें शास्त्रीयता का अधिक महत्व होने के कारण इन्हें शास्त्रीय होली भी कहा जाता है।
अलग-अलग समय पर अलग-अलग तरह की होलियों को गाये जाने की परंपरा
पूरे देश में जहां होली सामान्यता एक दिन मनायी जाती है, वहीं कुमाऊं में बैठकी होली की शुरुआत होली के पूर्वाभ्यास के रूप में पौष माह के पहले रविवार से विष्णुपदी होली गीतों से होती है। इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रहरों में अलग अलग शास्त्रीय रागों पर आधारित होलियां गाई जाती हैं। इसकी शुरुआत बहुधा धमार राग से होती है, और फिर सर्वाधिक काफी व पीलू राग में तथा जंगला काफी, सहाना, बिहाग, जैजैवन्ती, जोगिया, झिंझोटी, भीमपलासी, खमाज व बागेश्वरी सहित अनेक रागों में भी बैठकी होलियां विभिन्न पारंपरिक वाद्य यंत्रो के साथ गाई जाती हैं।
बैठकी होली के अंतर्गत आगे बसंत पंचमी से शिवरात्रि तक अर्ध श्रृंगारिक और उसके बाद श्रृंगार रस में डूबी होलियाँ गाई जाती हैं। इनमें भक्ति, वैराग्य, विरह, कृष्ण-गोपियों की हंसी-ठिठोली, प्रेमी प्रेमिका की अनबन, देवर-भाभी की छेड़छाड़ के साथ ही वात्सल्य, श्रृंगार, भक्ति जैसे सभी रस मिलते हैं।
देवी-देवताओं के साथ भी खेली जाती है होली
देश-प्रदेश में जहां लोग अपने परिजनों, सगे संबंधियों व मित्रों के साथ होली के रंग खेलते हैं, वहीं देवभूमि उत्तराखंड के लोग अपने देवी-देवताओं के साथ भी होली खेलते हैं। होली की टोलियां गांव या शहर के मंदिरों में जाती हैं और वहां होली गायन करती हैं। बागेश्वर में बागनाथ और गरुड़ क्षेत्र में कोट भ्रामरी के साथ ही नैनीताल के नयना देवी मंदिरों में होने वाली होलियां दर्शनीय होती हैं। नयना देवी मंदिर में स्थित हनुमान जी की विशाल मूर्ति सहित सभी मूर्तियों को होली के दिन बकायदा अन्य होल्यारों की तरह सफेद वस्त्र पहनाये जाते हैं और रंग चढ़ाते हुए उनके साथ भी होली खेली जाती है।
दिलों को जोड़ने के साथ बंद पड़े घरों के दर खोलने का माध्यम भी बनी होली
नैनीताल। ‘होली के दिन दिल मिल जाते हैं, रंगों में रंग मिल जाते हैं..’ यह बात तो होली में दिखती ही है। आज के आपाधापी के दौर में अनेक लोग पूरे वर्ष में केवल इसी दिन आपस में मिल पाते हैं। वहीं होली पलायन की मार झेल रहे पहाड़ों के बंद-वीरान पड़े घरों के दरवाजे खोलने का मौका-माध्यम भी साबित हो रही है। पलायन पर प्रवास में रह रहे अनेक लोग होली के मौके पर ही वर्ष में एक बार अपने घर लौटते हैं और अपने बंद पड़े घरों के ताले खोलते हैं। इससे कई वीरान घरों व गांवों में भी इस मौके पर रौनक लौट आती है।
स्वांग विधा के तहत महिलाएं करती हैं पुरुषों के स्वांग और करती हैं सामयिक स्थितियों पर कटाक्ष
कुमाउनी होली की एक विशिष्टता अनूठी-स्वांग विधा भी है, जिसके तहत खासकर महिलाएं महिलाओं के साथ ही पुरुषों का रूप-वेषभूषा धारण कर उनका स्वांग करती हैं। इस विधा में वर्ष की महत्वपूर्ण गतिविधियों को शामिल करने की परंपरा भी रही है। ‘स्वांग’ विधा के तहत, जिसमें खासकर महिला होल्यार अपने आसपास के अथवा चर्चित व्यक्तित्वों के भेष बदलकर आते हैं। हाल के वर्षों में महिलाओं के स्वांग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, डोनाल्ड ट्रंप, मेलोनिया ट्रंप, विंग कमांडर अभिनंदन व भारतीय क्रिकेटर विराट कोहली भी नजर आये हैं।