पहाड़ों में टीचरों की किल्लत और गैरमौजूदगी की खबरें तो आम सी बात हो गई है। लेकिन इन सब खबरों के बीच पिछले दिनों उत्तराखंड के पहाड़ के एक स्कूल से एक ऐसी खबर आई जिसने सभी का मन जीत लिया। दरअसल उत्तरकाशी जिले के एक सरकारी स्कूल में तैनात राजनीतिक विज्ञान के टीचर आशीष डंगवाल का पिछले दिनों स्कूल से ट्रांसफर हुआ। सुनने में ये किसी भी स्कूल में होने वाला सामान्य सा ट्रांसफर लगता है। लेकिन इस खबर के आते ही जो हुआ वो काफी आसामन्य रहा।
आशीष तीन सालों से उत्तरकाशी (केलसु घाटी) के एक सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे थे। उनका ट्रांसफर 21 अगस्त को हुआ तो स्कूल के बच्चों के साथ, उनके अभिभावक और आस पास के गाँव वाले भी आशीष से मिलने आए। ढ़ोल-दमौ के साथ उन्हें विदा किया गया। बच्चे तो बच्चे, माँ-बाप भी शिक्षक से लिपट लिपट कर रोये। बच्चे रोते हुए भी एक ही बात बोल रहे थे गुरु जी आप ना जाओ। डंगवाल की अपने छात्रों के बीच लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके तबादले की खबर आते ही स्कूल के बच्चे उनसे लिपटकर फफक कर रो पड़े। इस असाधारण टीचर की विदाई का कार्यक्रम भी असाधारण था, शहर के लोगों ने बकायदा शहर भर में ढोल नगाड़े बजाकर डंगवाल को विदाई दी।
रुद्रप्रयाग के रहने वाले आशीष डंगवाल पॉलिटिकल साइंस में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद शिक्षक बने और आपदा प्रबंधन, मानव विज्ञान में डिप्लोमा किया। 24 साल की उम्र में यह उनकी पहली पोस्टिंग थी और उन्हें एलटी के रूप में नियुक्त किया गया था। आशीश छठी से दसवीं कक्षा के छात्रों को पढ़ाते हैं। फिलहाल आशीष सोशल साइंस के लेक्चरार हैं और उन्हें लगता है कि इस समय भी टीचर और स्टूडेंट के बीच एक जेनेरेशन गैप है इसलिए लोग टीचिंग से दूर हो रहे हैं।
न्यूजपोस्ट से बातचीत में आशीष ने कहा कि “शिक्षा का क्रेज इसलिए भी कम हो रहा क्योंकि हम 5जी के जमाने में भी अपने टीचर में द्रोणाचार्य ढ़ूढ़ते हैं। इसके लिए हमें अपने आसपास लोगों की सोच बदलनी होगी।युवाओं को इस क्षेत्र में स्वागत है लेकिन उन्हें इस जेनेरेशन गैप को खत्म करना होगा।” अपनी वायरल होती तस्वीरों के बारे आशीष ने कहा कि “पिछले तीन साल में केलसु पट्टी के बड़े-बूढ़ो और बच्चों से बहुत प्यार मिला था मेरे लिए यह किसी सरप्राइज की तरह नहीं था क्योंकि उस गांव से मुझे बहुत प्यार मिला”
आशीष का मानना है कि इस विभाग में बहुत से ऐसे अनगिनत लोग हैं जो उनसे भी अच्छा-अच्छा काम कर रहे हैं। “मै अभी सीखने के स्तर पर हूं और सीख रहा हूं। मुझे लगता है कि मैंने ऐसा कुछ भी अलग नहीं किया है कि मुझे सोसाइटी या समाज में सम्मान मिले, जब मुझे काम से संतुष्टि मिल जाएगी तो मैं अवॉर्ड तब लूंगा।”
डंगवाल की इस लोकप्रियता का लोहा राज्य के मुख्यमंत्री ने भी माना। न केवल मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया पर उनकी तारीफ करी बल्कि देहरादून में डंगवाल से मुलाकात कर उनका उत्साह बढ़ाया। मुख्यमंत्री ने सोमवार को डंगवाल को सम्मानित किया कहा कि “इसी तरह से अपनी शैक्षणिक गतिविधियों व व्यवहार के साथ बच्चों का मार्गदर्शन करते रहें। समाज में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसे ऊर्जावान शिक्षकों से मिलकर बहुत खुशी होती है। उत्तराखण्ड में बहुत से ऐसे शिक्षक हैं, जो तमाम मुश्किलों के बावजूद भी समाज को नई दिशा दे रहे हैं।”
इससे पहले वर्तमान में रुद्रप्रयाग के डीएम मंगेश घिल्डियाल के लिये लोगों का ऐसै प्यार देखा जा चुका है। बागेश्वर में डीएम रहते जब मंगेश का तबादला रुद्रप्रयाग हुआ था वहा के आम लोगों ने उन्हें न केवल रोकने की अपील की थी बल्कि नौैबत सड़कों पर प्रदर्शन तक आ गई थी।
गौरतलब है कि है कि आशीष डंगवाल इससे पहले राजकीय इण्टर कॉलेज भंकोली में सहायक अध्यापक के पद पर तैनात थे। सरकारी कर्मचारियों के प्रति जनता के ऐसे जुड़ाल की मिसालें कम सुनाई देती हैं। लेकिन जब भी ऐसी कोई मिसाल सामने आती है तो वो सरकारी तंत्र में लोगों के विश्वास को नई ऊर्जा जरूर देती है।