आपने अकसर मासूम बच्चो को सडको के किनारे कूड़ा कचरा बिंनते हुए देखा होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि अपनी आजीविका चलाने के लिए कूड़ा बिनते बिनते ये नाबालिग नशे के आदि होते जा रहे हैं। देश के भविष्य के रूप में देखे जाने वाले ये नाबालिग एक ऐसे अंधेरे कुँए में गिरते जा रहे है जहाँ से निकल पाना आसान नहीं होगा।
उत्तराखंड के भी हर शहर में ऐसे ही नशे के शिकार बने बच्चों को देखा जा सकता है। उधम सिंह नगर जिले के खटीमा की गलियों में कूड़ा बिनकर नशा करने वाला कल्लू सिर्फ इसलिए कूड़ा बिनता है तांकि वो नशा कर सके। कल्लू नामक ये नाबालिग खटीमा की सडको पर अपनी आजीविका के लिए कूड़ा बिंनता है और दिनभर की दिहाड़ी से कमाए पैसे से नशा कर लेता है। नशे के चंगुल में फसा सूबे का भविष्य अपनी अलग ही कहानी सुनाता है। खतरनाक नशे के आदि हो चुके इन बच्चो का ना तो कोई आज है और ना ही कोई भविष्य, क्योकि इन पर किसी राजनेता या बुद्धिजीवी समाजसेवियों की नजरे इनायत नहीं होती है। इसका एक बड़ा कारण ये है कि इन नाबालिगों के तो वोट ही नहीं होते है तो इनकी सुध क्यों लेनी है।
खटीमा के गौटिया निवासी कल्लू के मुताबिक उसके पिता नहीं है इसीलिए वो और उसके भाई व् बहन कूड़ा कचरा बिनकर ही अपनी आजीविका कमाते हैं। कल्लू की ही तरह कई और नाबालिग बच्चे कूड़ा बिनते है जिनके साथ रहते हुए कल्लू को पंचर जोड़ने की ट्यूब से नशा करने की लत लग गई। कल्लू की बेबसी देखिये कि अब वो बिना रोटी खाए तो रह सकता है लेकिन बिना नशा किये नहीं रह सकता। देश के विकास के लिए नीव माने जाने वाले ये बच्चे अगर ऐसे ही नशे के चंगुल में फंसते रहेंगे तो ना केवल इनका आर्थिक बल्कि स्वास्थ्य का भी भारी नुक्सान होगा। विकास के बड़े बड़े दावे करने वाले राजनीतिक दल क्या सरकार बनने के बाद इन मासूमो की सुध लेंगे या वोट की राजनीती के शोर में कही इन मासूमो की सिसकियां दब कर रह जाएँगी।
सरकारी अस्पताल खटीमा के डॉक्टर प्रदीप के अनुसार ये बच्चे ज्यादातर नशे के लिए कैमिकल पदार्थो का प्रयोग करते हैं जो बहुत हानिकारक होता है। ऐसे बच्चो को विशेष इलाज एवं निगरानी की जरुरत होती है। पुलिस भी इस मामले से अनभिज्ञ नहीं है। उनका कहना है कि मासूमो को नशे से बचाने के लिए एक अभियान चलाया जायेगा । साथ ही मेडिकल स्टोर् मालिको को सूचित किया जा रहा है कि नसीली दवाईया बगैर डॉक्टर के पर्चे के बच्चो को नहीं दी जाये ।