ऋषिकेश। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानि एम्स ऋषिकेश बेहतर उपचार परिणामों के साथ रोगियों के चेहरों पर मुस्कान लाने व उन्हें निहायत कम खर्च में वल्र्ड क्लास स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने को सतत रूप से प्रयासरत है। इसी श्रंखला में संस्थान के यूरोलॉजी विभाग ने उपलब्धि के साथ रोबोटिक वेबसाइको वैजाइन फिस्टुला ऑपरेशन का एक वर्ष पूरा कर लिया है, जिसमें अब तक 10 मरीजों की सफलता पूर्वक सर्जरी की जा चुकी है। एम्स निदेशक पद्मश्री प्रो. रवि कांत ने बताया कि यूरोलॉजी विभाग द्वारा रोबोट के साथ कई तरह की सर्जरी की जा रही हैं, देखा गया है कि इसका पारंपरिक सर्जरी की तुलना में अधिक फायदा हो रहा है।
प्रो. कांत ने बताया कि संस्थान में रोबोटिक वेसाइकोवैजाइन फिस्टुला ऑपरेशन पिछले साल शुरू किया गया था, जिसके तहत अब तक 10 मरीजों के ऑपरेशन हो चुके हैं। सभी मामले शतप्रतिशत सफल रहे हैं और रोगी ऑपरेशन के बाद पूरी तरह से स्वस्थ्य हैं। एम्स निदेशक प्रो. कांत ने बताया कि मूत्र संबंधी समस्याओं से पीड़ित महिला रोगियों के लिए हर मंगलवार दोपहर 2 से 4 बजे यूरोलॉजी विभाग ने महिला पैल्विक उपविशिष्टता क्लिनिक शुरू की है, जो कि मूत्र असंयम से पीड़ित महिलाओं के लिए अत्यधिक फायदेमंद साबित हो रही है। उन्होंने बताया कि महिलाओं में जागरूकता की कमी से ऐसे मामले सामने नहीं आ पा रहे हैं जिससे देश में इससे ग्रसित महिला रोगियों की सही संख्या का अनुमान लगाना कठिन है, लिहाजा एम्स ऋषिकेश के यूरोलॉजी विभाग द्वारा महिला जागरूकता के लिए ही उक्त क्लिनिक शुरू किया गया है।
यूरोलॉजी विभाग के डॉ. अंकुर मित्तल ने बताया कि वेबसाइको वैजाइन फिस्टुला पर प्रकाश डाला और बताया कि वीवीएफ मूत्राशय व योनी के बीच एक असामान्य ओपनिंग है, जिसके परिणामस्वरूप निरंतर व अनियंत्रित मूत्र रिसाव होता है। यदि महिला का प्रसव कठिन होता है तो प्रसव के बाद यह फिस्टुला बन सकता है। जब एक लंबे समय तक प्रसव पीड़ा अजन्मे बच्चे को पैलविस के विरुद्ध दबाती है तो रक्त प्रवाह बाधित होता है, जिससे प्रभावित उत्तक नेक्रोटाइज हो सकता है जिससे एक छेद बन जाता है। उन्होंने बताया कि यह कुछ तरह की सर्जरी या रेडियोथैरेपी के बाद भी बन सकता है। यह स्त्री रोगों और प्रसूति प्रक्रियाओं की सबसे बड़ी जटिलताओं में से एक है, लिहाजा कुछ बच्चे जन्मजात फिस्टुला के साथ पैदा हो सकते हैं। डॉ. अंकुर ने बताया कि वेसाइकोवैजाइन फिस्टुला आमतौर पर विकासशील देशों में होता है, गरीब देशों में कम से कम तीन मिलियन महिलाएं फिस्टुला से ग्रसित हैं, अकेले अफ्रीका में हर साल 30,000 से 100,000 तक नए मामले सामने आते हैं। प्रसूति संबंधी फिस्टुला के अत्यधिक तेजी से बढ़ते मामलों में महत्वपूर्ण कारक छोटी उम्र में विवाह व प्रसव के अलावा कुपोषण और अपर्याप्त रूप से विकसित सामाजिक व आर्थिक संरचनाएं हैं। चूंकि पेशाब के लगातार रिसाव के कारण रोगी को हमेशा कपड़ों में गीलापन और बदबू महसूस होती है, जिससे अक्सर रोगी पर गहरा भावात्मक दुष्प्रभाव पड़ता है। इसके उपचार के बाबत उन्होंने बताया कि फिस्टुला का ऑपरेशन आमतौर पर ट्रांसवेजाइनल मार्ग या पेट पर चीरा लगाकर किया जाता है, पेट के रास्ते इसे पारंपरिक, लेप्रोस्कोपिक या रोबोट की सहायता से किया जा सकता है।