पहलः रिंगाल की टोकरी में चौलाई के लड्डू का प्रसाद

0
1772

इस यात्रा सीजन से केदारनाथ धाम में चौलाई के लड्डू ही प्रसाद के रूप में चढ़ेंगे। हेली सेवा से दर्शन करने वाले यात्रियों को यह प्रसाद रिंगाल की टोकरी में उपलब्ध कराया जाएगा। केदारनाथ स्थानीय प्रसाद योजना की तैयारी बैठक में यह निर्णय लिया गया।

जिला मुख्यालय के सभागार में हुई बैठक में जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने बताया कि चौलाई के लड्डू बनाने और उनका विक्रय करने के लिए केदारनाथ प्रसाद संघ का गठन किया गया है। जिले में कार्यरत सभी गैर सरकारी संस्थाएं अथवा कोई अन्य संस्थान, जो स्थानीय उत्पादों को लेकर कार्य कर रहे हैं या करना चाहते हैं, केदारनाथ प्रसाद संघ से सीधे संपर्क कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि कहा कि पूर्व में बाबा केदार को इलायची का प्रसाद चढ़ाया जाता था, लेकिन इस वर्ष से स्थानीय उत्पाद से निर्मित लड्डू ही प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाएंगे। इससे जो भी लाभ अर्जित होगा, उसका लाभांश इस कार्य से जुड़े हुए प्रत्येक कार्यकर्ता में बांटा जाएगा।

जिलाधिकारी ने बताया कि इस क्षेत्र में कार्य कर रहे स्वयं सहायता समूहों को आजीविका की ओर से लड्डू बनाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके साथ ही लड्डू बनाने वाली संस्थाओं को एफएसएसएआइ (फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया) से लाइसेंस लेना होगा, ताकि लड्डू की गुणवत्ता बनी रहे। बैठक में प्रभारी सीडीओ एनएस रावत, पीडी एमएस नेगी, डीडीओ एएस गुंज्याल समेत एनजीओ व आजीविका के प्रतिनिधि मौजूद रहे।

मंदिर समिति व संघ के बीच होगा एमओयूः जिलाधिकारी ने बताया कि श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति और केदारनाथ प्रसाद संघ का जल्द एमओयू कराया जाएगा। ताकि अन्य किसी भी प्रकार के उत्पाद को मंदिर में न चढ़ाया जा सके।

CM-photo-04-dt.23-February-2018-e1519383154909-696x404

उत्तराखंड के किसानों की आय दोगुनी करने के संकल्प को लेकर यह विचार वर्तमान मुख्यमंत्री के कृषि मंत्रित्व कार्यकाल में प्रारंभ हुआ था जिसे अब अमलीजामा पहनाया जा रहा है। इस प्रसाद में रिंगाल की टोकरी, पत्थर की मूर्ति, चौलाई, कुट्टू, मंडुवा, झंगोरा आदि पर्वतीय उत्पादों का प्रयोग होगा, इन्हें शुद्ध देसी घी में प्रसाद के रूप में तैयार किया जाएगा।

गौरतलब है कि इसी प्रकार के तैयार प्रसाद को बदरीनाथ धाम में गोविंद सिंह द्वारा बेचा गया, जिन्होंने 19 लाख का प्रसाद बेचा। इस प्रसाद में 10 लाख रु. की लागत आई और 9 लाख रु. उन्हें बचत के रूप में मिल गए। इसी प्रकार का अभिनव प्रयोग उत्तराखंड के सभी प्रमुख 625 मंदिरों में किया जाएगा, जिसमें इन उत्पादों और प्रसाद की ब्रांडिंग की जाएगी। मुख्यमंत्री का कहना है कि जिस प्रकार वैष्णोदेवी का प्रसाद एक ब्रांड के रूप में पूरे देश में जाता है, ऐसा ही प्रसाद उत्तराखंड में भी होगा।