अनंत चतुर्दशीः सौभाग्य की प्राप्ति और दरिद्रता का नाश करने वाला पर्व

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हरिद्वार,  भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। इस वर्ष अनंत चतुर्दशी का पर्व 12 सितंबर को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है। इसी दिन मूर्ति विसर्जन के साथ गणेशोत्सव का समापन भी होता है।
ज्योतिषाचार्य पं. प्रदीप जोशी के मुताबिक अनंत चतुर्दशी का व्रत करने से सौभाग्य की प्राप्ति और दरिद्रता का नाश होता है। अनंत चतुर्दशी को बहुविधि से भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा करनी चाहिए। पूजा के दौरान  14 गांठों से युक्त धागा भगवान को अर्पण कर धारण करना चाहिए। बताया कि अनंत पूजा के दौरान 14 की संख्या का ध्यान रखना जरूरी है। जो भी वस्तु भगवान का अर्पण करें उसमें 14 की संख्या होनी चाहिए। बताया कि अनंत भगवान के व्रत की संख्या भी 14 ही रखनी चाहिए। अधिक रखने पर कोई दोष नहीं हैं।
अनंत चतुर्दशी व्रत के संबंध में उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में सुमन्तु ब्राह्मण की कन्या का कौण्डिन्य के साथ विवाह हुआ था। उसने दीन पत्नियों से पूछकर अनन्त व्रत धारण किया। जिससे वह धन संपदा से परिपूर्ण हो गया। वहीं कुयोगवश कौडिन्य ने अनन्त के डोरे को तोड़ कर आग में फेंक दिया था, जिससे उसकी संपत्ति नष्ट हो गई। तब वह दुखी होकर अनन्त को देखने वन में चला गया। वहां आम्र, गौ, वृष, खर, पुष्करिणी और वृद्ध ब्राह्मण मिले।
ब्राह्मण स्वयं अनन्त थे। वे उसे गुहा में ले गए, वहां जाकर बताया कि वह आम वेद पाठी ब्राह्मण था। विद्यार्थियों को न पढ़ाने से आम हुआ। गौ पृथ्वी थी, बीजों का अपहरण करने से गौ हुई। वृष धर्म, खर क्रोध और पुष्करिणी बहनें थीं। दानादि लेने देने के कारण पुष्करिणी हुई और वृद्ध ब्राह्मण मैं हूं। बताया कि ब्राह्मण रूपधारी अनंत ने उन्हें इस व्रत को मार्ग में मिलने वाले प्रत्येक व्यक्ति को बताने की बात कही। इस वर्ष अनंत चतुर्दशी का व्रत 12 सितम्बर को मनाया जाएगा।