मंदिर नवनिर्माण के दौरान मिले पौराणिक ओखल

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रुद्रप्रयाग जिले के विश्वनाथ मंदिर, गुप्तकाशी में नवनिर्माण के दौरान पौराणिक ओखल मिले हैं, जो एक बहुत बड़े से आकार की शिला पर स्थित हैं। माना जा रहा है कि इस शिला के ऊपर लगभग दो सौ साल पुराना कोठा रहा होगा। इन ओखलों में भक्तों द्वारा भगवान को नवधान्य के भोग लगाने की परंपरा थी।

स्थानीय निवासी आचार्य कृष्णानंद नोटियाल का मानना है कि, ‘मंदिर में स्थित कोठा भवन के ईशान कोण पर दो-दो ओखलियों का पाया जाना सामान्य बात नहीं है। असल में ये ओखलियां इस बात के गवाह हैं कि प्राचीन काल में प्रतिदिन ताजे धान को इन ओखलियों में कूटा जाता था। उसके बाद भगवान विश्वनाथ को भोग लगाया जाता था।’

विशेषकर अन्नकूट भतूज के दिन आसपास के गांवों की कन्या व औरतें धान कूटकर भगवान का अन्नकूट भतूज तैयार करती थीं। उसके बदले में नारियल अौर दक्षिणा देकर सम्मान सहित उन्हें विदा किया जाता था। बाद में इन ओखलों के ऊपर भवन निर्माण किया गया, जो कि गलत था। अब स्वयं भगवान ने अपनी ओखलें प्रकट की हैं तो परंपरा को पुनः प्रारंभ करना चाहिए। साथ ही इसके संरक्षण के प्रयास किये जाने चाहिए।