पिथौरागढ, के थल मे देश की आजादी के 69 साल के बाद भी उत्तराखण्ड के दुर्गम क्षेत्र विकास से महरुम है। यहां नदियों को पार कर लोग स्कूल जाते है और अपने दैनिक कार्यों के लिए भी जान जोखिम में डाल कर नदी पार करते हैं। कई सरकारें आई और गयी मगर शायद ही किसी ने विकास की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए गांवों में काम किया है। एेसे एक दर्जन गांव है जो विकास से महरुम हैं और जिनको सरकार से कोई उम्मीद भी नहीं है, लिहाजा गांव के लोगों ने अपनी आवाजाही के लिए खुद ही पुल तैयार कर सरकार को आईना दिखाया है।
बारह दिन पहले रामगंगा नदी पर बना लकड़ी का अस्थायी पुल बह जाने के बाद भी प्रशासन की ओर से कोई पहल नहीं की। इससे परेशान ग्रामीणों ने श्रमदान कर 55 मीटर लंबा अस्थायी पुल तैयार कर लिया है। पुल तैयार हो जाने से ग्रामीणों को बाज़ार और स्कूल आने जाने के लिए आठ किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय नहीं करनी पड़ेगी।
अस्याली सहित आधा दर्जन गांवों के लिए आज तक स्थायी पुल नहीं बना है। ग्रामीण हर वर्ष अस्थायी पुल का स्वयं निर्माण करते हैं। जून माह में नदी में पानी का जल स्तर बढ़ने तक ग्रामीण इसी पुल से आवागमन करते हैं। इस वर्ष अप्रैल माह में ही नदी का जल स्तर अचानक बढ़ गया। जिससे पुल नदी में समां गया। इसके बाद से ही ग्रामीण बाजार और स्कूल आने जाने के लिए आठ किलोमीटर का फेरा लगा रहे थे।
ग्रामीणों ने पुल बह जाने की सूचना तहसील प्रशासन को दे दी थी, प्रशासन ने पुल निर्माण के लिए कोई पहल नहीं की। इससे परेशान ग्रामीणों ने श्रमदान कर नदी पर 55 मीटर लंबा पुल तैयार कर लिया। इस पुल पर सोमवार से आवागमन भी शुरू हो गया है। नदी में जल स्तर बढ़ जाने पर ग्रामीणों को फिर समस्या का सामना करना पड़ेगा। अस्याली, सिन्तोलिया, बलिगाड़, ब्लयाऊ, ओखरानी आदि गांवों के ग्रामीणों ने अविलंब स्थाई पुल बनाए जाने की मांग की है।
गौरतलब है कि चुनावों के समय जनता से बडे बडे वायदे करने वाले राजनेता जीतने के बाद जनता की भावनाओं से कोई सरोकार नहीं रखते। यही वजह है कि कई दशकों से एक पुल की मांग कर रहे दर्जन भर गांव के लोगों की सुनने वाला कोई नहीं है, लिहाजा गांव के लोगों ने सरकार को आईना दिखाते हुए कुद ही पुल तैयर कर सरकार की नाकामी को दर्शाया है।