खाकी में इंसान: अशोक कुमार बने उत्तराखंड के नये पुलिस महानिदेशक

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उत्तराखंड के नए डीजीपी अशोक कुमार ने सोमवार शाम पदभार ग्रहण किया। इस अवसर पर निवर्तमान डीजीपी अनिल कुमार रतूड़ी ने उन्हें शुभकामनाएं दीं। इससे पहले  पूर्वाह्न में देहरादून पुलिस लाइन में अनिल कुमार रतूड़ी के विदाई समारोह के रूप में भव्य रैतिक परेड का आयोजन किया गया।
मूल रूप से हरियाणा के रहने वाले अशोक कुमार 1989 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। आईआईटी दिल्ली के बीटेक (मैकेनिकल इंजीनियरिंग) और एमटेक (थर्मल इंजीनियरिंग) की पढ़ाई करने वाले अशोक कुमार ने पुलिस की नौकरी की शुरुआत बतौर एएसपी (प्रशिक्षु) इलाहाबाद से की। उसी दौरान 6 दिसम्बर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने के बाद इलाहाबाद में कर्फ्यू के दौरान 10 दिन तक दिन-रात ड्यूटी पर मुस्तैद रहे। वह शाहजहांपुर, बागपत, रामपुर के एसपी, मैनपुरी और मथुरा में एसएसपी भी रहे।
22 जनवरी, 1994 को कुख्यात आतंकी हीरा सिंह गैंग के साथ तीन घंटे चली मुठभेढ़ में दो आतंकवादियों को मार गिराया गया, जिनसे 2 एके 47 रायफलें और अन्य शस्त्र बरामद हुए थे। यह गिरोह 100 से अधिक हत्याओं के लिए जिम्मेदार था। उत्तराखंड बनने से पहले वह चमोली, ऊधमसिंह नगर, हरिद्वार और नैनीताल में भी नियुक्त रहे। हरिद्वार के एसएसपी रहते हुए उन्होंने अर्द्ध कुंभ मेला-2004 को कुशलता से सम्पन्न करवाया।
उत्तराखंड पृथक राज्य बनने के बाद वह डीआईजी (मुख्यालय) बने और कई सुधार कार्यक्रम लागू करवाने में उनकी अहम भूमिका रही। पूर्व डीजीपी जेएस पांडेय ने उन्हें उत्तराखंड पुलिस के “शाहजहां” की संज्ञा दी थी। 2007 से 2009 तक वह आईजी गढ़वाल और कुमाऊं भी रहे। अपर पुलिस महानिदेशक अभिसूचना एवं सुरक्षा, प्रशासन, निदेशक अभियोजन तथा कमांडेंट जनरल होमगार्ड्स के रूप में महत्वपूर्ण पदों पर भी रहे। निदेशक सतर्कता के रूप में लोक सेवकों में व्याप्त भ्रष्टाचार निवारण के लिए ”फाइट अंगेस्ट करप्शन” अभियान चलाया और दो साल में 50 लोगों को जेल भेजा। पहली जनवरी, 2019 को वह पदोन्नत होकर महानिदेशक बने और डीजी (अपराध एवं कानून व्यवस्था) के रूप में क्राइम वर्कआउट, मानवीय पुलिसिंग पर विशेष ध्यान दिया, जिसमें कोरोना काल भी है।
अशोक कुमार ने यूएन मिशन कोसोवो में महत्वपूर्ण सेवाएं दीं, जिसके लिए यूएन मेडल ऐंड बार से सम्मानित किए गए। 2010 में डीआईजी सीआरपीएफ के रूप में प्रतिनियुक्ति पर रहते हुए नक्सलवाद और आतंकवादरोधी अभियानों में अहम भूमिका निभाई। बीएसएफ में आईजी (प्रशासन) रहते हुए अटारी-बाघा बॉर्डर और हुसैनीवाला बॉर्डर पर होने वाली बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी देखने आने वाले दर्शकों के लिए बड़ी दर्शक दीर्घा का निर्माण करवाया। आईजी बंगाल फ्रंटियर/पंजाब फ्रंटियर के रूप में घुसपैठ एवं एंटी ड्रग्स/एंटी टेरोरिस्ट गतिविधियों को रोकने में अहम भूमिका निभाई। साल 2013 में केदारनाथ आपदा के दौरान कालीमठ घाटी में राहत एवं पुनर्वास कार्यों को अंजाम दिया। 14 गांव गोद लिए और कालीमठ मंदिर को बहने से बचाया।
उन्होंने ‘खाकी में इंसान’ नामक पुस्तक लिखी जो लोगों के बीच सराही गई और उसके लिए जीबी पंत अवार्ड भी मिला। वह चार पुस्तकें अभी तक लिख चुके हैं। इसके अलावा पीएम-2006, पीपीएम-2013, यूएन मेडल बार-2001, आईआईटी दिल्ली एलुमनी अवार्ड-2017, महाराणा प्रताप ट्रॉफी बीएसएफ-2014 आदि अलंकरणों से भी नवाजे गए। एक खास सर्वे में वह देश में चोटी के 25 कर्मठ आईपीएस अफसरों में शुमार किए गए हैं। खेल-कूद में भी उनकी अत्यंत रुचि है। वह बैडमिंटन और घुड़सवारी आदि खेलों में पुलिस टीमों की ओर से देश-विदेश की कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके हैं।