इस साल होलिका दहन का योग शुभ मुहूर्त में

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हरिद्वार,  रंगों का त्योहार होली इस साल 10 मार्च को मनाया जाएगा। नौ मार्च को होलिका दहन होगा। इस वर्ष होलिका दहन गज केसरी योग में किया जाएगा। इस योग को शुभकारी माना जाता है। यह कहना है पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री का।
उन्होंने बताया कि इस बार होलिका दहन गज केसरी योग में होगा। यह शुभकारी होता है। इसका प्रभाव व्यक्ति की राशि के अनुसार उसे मिलता है। इसी के साथ इस बार होली उत्तर फाल्गुन नक्षत्र में त्रिपुष्कर योग में भी पड़ रही है। कहा जाता है कि इससे होली का महत्व और बढ़ जाता है। इस बार  होलिका दहन नौ मार्च को संध्या काल में 6 बजकर 22 मिनट से 8 बजकर 49 मिनट तक होगा।
इस दिन भद्रा का पुंछकाल सुबह 9 बजकर 50 मिनट से 10 बजकर 51 मिनट तक रहेगा। भद्रा का मुख सुबह 10 बजकर 51 मिनट से 12 बजकर 32 मिनट तक रहेगा। होलिका दहन में भद्रा का विशेष ध्यान रखा जाता है। भ्रदा काल में होलिका दहन निषेध माना गया है। इस बार होलिका दहन से पूर्व भ्रदा काल समाप्त हो जाएगा।
होलिका अष्‍टक मंगलवार से लग गए हैं। नौ मार्च को होलिका दहन और दस मार्च को धूलेड़ी है। होलिका अष्‍टक लगने के बाद कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जा सकते। न ही नवविवाहिताएं मायके से ससुराल अथवा ससुराल से मायके ही जा सकती हैं। यह कहना है कि प्रमुख ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र नौटियाल का।
वह कहते हैं होलिका अष्टक के शाब्दिक अर्थ पर जाएं तो होला+ अष्टक अर्थात होली से पूर्व के आठ दिन। होलाष्टक से होली के आने की दस्तक मिलती है, साथ ही इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरु हो जाती है।होलाष्टक के मध्य दिनों में 16 संस्कारों में से किसी भी संस्कार को नहीं किया जाता है। यहां तक की अंतिम संस्कार करने से पूर्व भी शान्ति कार्य किये जाते हैं। इन दिनों में 16 संस्कारों पर रोक होने का कारण इस अवधि को शुभ नहीं माना जाता है।
उन्‍होंने बताया कि धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव ने तपस्या भंग करने की कोशिश करने वाले कामदेव को फाल्गुन महीने की अष्टमी को भस्म कर दिया था। प्रेम के देवता कामदेव के भस्म होते ही पूरे संसार में शोक की लहर फैल गई थी। तब कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी से क्षमा याचना की और भोलेनाथ ने कामदेव को फिर से जीवित करने का आश्वासन दिया। इसके बाद लोगों ने रंग खेलकर खुशी मनाई थी। कुछ ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि होली के आठ दिन पहले से प्रह्लाद को उसके पिता हिरण्यकश्यप ने काफी यातनाएं दीं। आठवें दिन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बिठाकर मारने का प्रयास किया। आग में न जलने का वारदान पाने वाली होलिका जल गई थी और बालक प्रह्लाद बच गया था। ईश्वर भक्त प्रह्लाद के यातना भरे आठ दिनों को शुभ नहीं माना जाता है। इसलिए कोई भी शुभ काम न करने की परंपरा है।