देहरादून। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय विवादों से अपना नाता छुड़ाने में लगातार असफल हो रहा है। एक के बाद एक नए विवाद विवि में जन्म ले रहे हैं। नया विवाद नियमों की खानापूर्ती करने के लिए ‘जुगाड़’ की फैकल्टी को संबद्ध करने से जुड़ा है। मान्यता के लिए विवि प्रदेशभर के आयुर्वेद चिकित्सकों को अपने परिसरों से अटैच करता है। मान्यता मिलने के बाद उन्हें वापस मूल तैनाती स्थल भेज दिया जाता है लेकिन अब सीसीआईएम से मान्यता बरकरार रखने के लिए विवि की यह तकनीक अब अटैच हुए चिकित्सकों को नागवार गुजर रही है।
सेंट्रल काउंसिल फोर इंडियन मेडिसन (सीसीआईएम) के संबऋता मानकों को पूरा करने के लिए विवि ने प्रदेश भर के आयुर्वेद डॉक्टरों को एकत्र कर संबद्धता हासिल कर ली। संबद्धता मिलने के बाद फिर उन्हें वापस तैनाती स्थल भेज दिया गया। ऐसा एक नहीं कई कई बार किया जा रहा है। इसी क्रम में अब एक बार फिर विवि से अटैच डॉक्टरों की संबद्धता विवि से समाप्त करते हुए उन्हें मूल तैनाती की जगह भेज दिया गया है। जबकि विवि में अभी तक पर्याप्त फैकल्टी की कोई व्यवस्था नहीं है। आलम यह है कि अब नए सत्र में दाखिला लेने वाले छात्रों को पढ़ाने के लिए विवि के पास फैकल्टी उपलब नहीं हैं। दरअसल विश्वविद्यालय के तीन कैंपस है। हर्रावाला स्थित मुख्य परिसर सबद्धता के मामले में सबसे ज्यादा बुरे हाल है। इसके अलावा बाकी दो परिसरों गुरुकुल और ऋषिकुल परिसरों के हालात भी कुछ जुदा नहीं है। यहां फैकल्टी को लेकर हमेशा कमी बनी रहती है। जिस कारण छात्रों को भारी परेशानियां झेलनी पड़ती है।
मान्यता के लिए डॉक्टरों को किया जा रहा अटैच
पिछले काफी वक्त से विवि द्वारा संबद्धता हासिल करने के लिए प्रदेश भर के आयुर्वेद चिकित्सकों को बतौर फैकल्टी विवि से अटैच कर दिया गया लेकिन नई सरकार में आयुष मंत्री डॉ हरक सिंह रावत ने सभी अटैच किए गए चिकित्सकों को वापस मूल तैनाती स्थल भेजे जाने के निर्देश दिए। जिसके बाद चिकित्सकों को वापस भेज दिया गया। इसके बाद विवि में नए सत्र के लिए काउंसिलिंग और सीसीआईएम के निरीक्षण और संबद्धता हासिल करने के लिए एक बार फिर चिकित्सकों को वापस अटैच कर दिया गया लेकिन काउंसिलिंग प्रक्रिया पूरी होने के साथ ही शासन ने फिर से चिकित्सकों को मूल तैनाती स्थलों पर भेज दिया।
चिकित्सकों में रोष व्याप्त
चिकित्सकों की माने तो बार बार विवि और मूल तैनाती स्थलों के बीच चक्कर काटते काटते अब वे भी परेशान हो गए है। चिकित्सकों का कहना है कि विवि में लंबे वक्त तक अटैच रहने के कारण ज्यादातर चिकित्सकों के बच्चों ने भी दून के स्कूलों में दाखिले ले लिए। परिवार भी यही रहने लगे। जिस कारण अब उनके लिए भी बार बार मूल तैनाती और विवि अटैच करने की प्रक्रिया बोझिल हो रही है।
पढ़ाई हो रही चौपट
मान्यता हासिल करने के लिए विवि भले ही इधर-उधर के चिकित्सकों के जरिए सीसीआईएम से अनुमति हासिल करता आ रहा है लेकिन इस पूरे खेल में बच्चों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। फैकल्टी की संख्या पर्याप्त न होने के कारण छात्र-छात्राओं पढ़ाई चौपट हो रही है। हालांकि विवि ने साल की शुरूआत में आयोजित हुए विधानसभा चुनावों के बाद फैकल्टी के लिए नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की थी लेकिन उस प्रक्रिया को लेकर भी अब तक कोई सकरात्मक पहल होती दिखाई नहीं दी है। मामले में विवि के कुलचसिव अनूप कुमार गक्खड़ का कहना है कि फैकल्टी संबद्धता मामले में शासन से अनुरोध किया जाएगा कि जब तक नियुक्ति प्रक्रिया पूरी नहीं होती तब तक के लिए चिकित्सकों को विवि से ही अटैच रखा जाए। इसके अलावा नियुक्ति प्रक्रिया में शासन की ओर से कुछ आपत्तियां हैं, उनका भी निस्तारण किया जा रहा है।