देहरादून। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय से निष्कासित कर्मचारियों ने अब आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया है। सोमवार से उन्होंने क्रमिक अनशन शुरू कर दिया है। कर्मचारी पिछले दस दिन से विवि के बाहर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने अब आमरण अनशन की चेतावनी दी है।
दरअसल, विश्वविद्यालय में स्थित धन्वंतरी वैधशाला में कई कर्मचारी वर्ष 2016 से विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे थे। मई 2018 में उन्हें अचानक बिना कारण बाहर कर दिया गया। इतना ही नहीं कर्मियों के विवि प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। जिसके बाद से वह विवि में पुनर्नियुक्ति की मांग कर रहे हैं। इनका कहना है कि साल 2016 में तत्कालीन कुलसचिव ने परिसर के आयुर्वेद संकाय में सीसीआईएम के निरीक्षण के लिए पीपीपी मोड पर संचालित धन्वंतरी वैधशाला के कर्मचारियों को आवश्यकतानुसार पदों पर समायोजित किया। जिसके बाद धन्वंतरी वैद्यशाला ने लिपिक, लेखा लिपिक, लेखाकार, फार्मेसिस्ट, पंचकर्म सहायक, स्टाफ नर्स, लाइब्रेरियन, लैब टेक्नीशियन, वार्ड ब्वॉय, वार्ड आया, लैब असिस्टेंट समेत सामान्य चतुर्थ श्रेणी कार्मिकों के रूप में कर्मचारियों को नियुक्ति प्रदान की थी। तीन साल तक इन्हीं कार्मिकों के शैक्षिक प्रमाण पत्रों के आधार पर विवि सीसीआईएम से मान्यता लेता रहा। लेकिन, इस साल 21 मई को सीसीआईएम का निरीक्षण पूरा होने के आठ दिन बाद ही कर्मियों को बिना किसी पूर्व सूचना के बाहर निकाल दिया गया। विवि पर मान्यता हासिल करने के लिए कार्मिकों के शैक्षिक दस्तावेजों को भी जब्त करने का आरोप कर्मियों ने लगाया है। उन्होंने बताया कि शैक्षिक प्रमाण पत्र के अभाव में कार्मिक बेरोजगार होकर सड़कों पर आ गए हैं। इस दौरान नरेंद्र नेगी अनशन पर रहे। जबकि विजय कुमार, अमरदीप, विनोद डंडरियाल, पंकज कुमार, वंश कुकरेती, रेणु बाला सहित अन्य कर्मचारी धरने पर रहे।