भगवान बदरीनाथ व उनके सेवक कुलदेव घंटाकर्ण की भोजन थाल में सजाए जाने वाले विशेष फल ‘बदरी बेर’ के कुछ और अहम रहस्य खुले हैं। ताजा शोध के मुताबिक औषधीय गुणों से भरपूर यह फल लाइलाज कैंसर के खात्मे में कारगर तो है ही, हिमालयी क्षेत्र की मृदा की सेहत सुधारने व भूकटाव रोकने में भी असरदार है।
समुद्रतल से 2200 से 3300 मीटर की ऊंचाई पर भगवान बदरीनाथ की धरा के धार्मिक फल ‘बदरी बेर’ (हिपोफी सेलीसिफोलिया) पर शोध रिपोर्ट के अनुसार बदरी बेर के पेड़ की जड़ें मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी को पूरा कर उर्वरा शक्ति को बढ़ाती हैं। इससे अनुपजाऊ जमीन भी आबाद हो सकती है। इसकी जड़ें मिट्टी को इस कदर बांधे रखती है, कि संबंधित क्षेत्र में भू-कटाव व भू-क्षरण कतई नहीं होता।
बदरी बेर से कैंसर के इलाज को अब तक पांच उत्पाद तैयार करने के बाद जड़ी बूटी शोध एवं विकास संस्थान (भेषज) के वैज्ञानिक उच्च हिमालय में मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाने तथा अतिवृष्टि में भू-कटाव व मिट्टी का क्षरण रोकने के लिए इस फल के पेड़ों का रक्षा कवच तैयार करने में जुट गए हैं। इसके तहत भूस्खलन तथा बंजर रेतीली जमीन पर वृहद पौधरोपण कर उसे हरा भरा बनाने की तैयारी कर ली गई है।
भेषज के कुमाऊं प्रभारी डॉ. विजय भट्ट के मुताबिक औषधीय गुणों वाले बदरी बेर पर शोध जारी है। इसके पेड़ों की जड़ों में मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने की जो खूबी सामने आई है, वह उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हरियाली बढ़ाने वाली है। चूंकि यह भूकटाव व मिट्टी का क्षरण रोकने में भी असरदार है, इसलिए हमने उच्च इलाकों में भूस्खलन प्रभावित इलाके चिह्नित कर पौधरोपण का काम शुरू कर दिया है। इसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे।
भेषज के वैज्ञानिक ‘बदरी बेर’ का उत्पादन बढ़ाने के लिए पिथौरागढ़, बागेश्वर, चमोली व उत्तरकाशी की उच्च चोटियों पर एक-एक हेक्टेयर में पौधालय तैयार कर रहे हैं। अब राज्य में प्राकृतिक आपदा से प्रभावित धारचूला, दारमा (पिथौरागढ़) के साथ ही नीती व माणा, गंगोत्री, यमुनोत्री, उत्तरकाशी, चमोली आदि इलाकों में वृहद पौधरोपण का खाका तैयार कर लिया है। ताकि वहां की मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़े, हरियाली आए और भूकटाव भी काम किया जा सके।