नई दिल्ली। यूपीए शासनकाल के दौरान बैंकों की ओर से खैरात की तरह बांटी जाने वाली कर्ज और इसके चलते हुई बैंक की राशि की हेराफेरी के चलते आरबीआई का भरोसा अब बैंकों पर जम नहीं रहा है। हाल में आईसीआईसीआई बैंक के नए नियुक्त सीईओ संदीप बक्शी के सिर्फ तीन साल के कार्यकाल को आरबीआई की ओर से मंजूरी दिया जाना नियामक बैंक का बैंकों को स्पष्ट संकेत है।
कहना जरूरी है कि आईसीआईसीआई बैंक के पूर्व सीईओ चंदा कोचर पर लोन दिए जाने में बरती गई अनियमितता के आरोप लगे। इसके चलते बैंक प्रबंधन बोर्ड ने पहले उन्हें लंबी छुट्टी पर भेज दिया था और बाद में कोचर ने इस्तीफा सौंप दिया।
कोचर पर असल में अपने पति के कारोबारी मित्र व वीडियोकॉन कंपनी के मालिक वेणुगोपाल धूत को 3,250 करोड़ की राशि लोन में दिए जाने में मदद पहुंचाने का आरोप लगा था।
आईसीआईसीआई बैंक प्रबंधन ने संदीप बक्शी के कार्यकाल को पांच साल किए जाने की सिफारिश की थी। लेकिन आरबीआई ने बोर्ड की बात नहीं मानी और बक्शी को सिर्फ तीन साल सीईओ के रूप में काम करने का आदेश दिया।
इससे पूर्व येस बैंक के सीईओ राणा कपूर को आरबीआई ने कहा था कि वह जनवरी 2019 के बाद अपने पद पर बने नहीं रह सकते हैं। आरबीआई की नजर में उन्होंने बैंक के एनपीए के बारे में नियामक को सही जानकारी नहीं दी।
उल्लेखनीय है कि पंजाब नेशनल बैंक की ओर से जारी एलओयू व एलओसी जारी करने के मामले में केंद्र सरकार की ओर से कहा गया था कि नियामक ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। लेकिन उस वक्त आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल ने संसदीय समिति से कहा था कि बैंकों पर नियंत्रण के लिए आरबीआई के पास समुचित अधिकार नहीं हैं।
हालांकि आरबीआई बैंकों के घोटालों के सामने आने के बाद बैंकों की ओर से की जा रही गलतियों को लेकर पूरी तरह सजग हो गया है। इसका दृष्टांत तब सामने आया जब नियामक ने आईसीआईसीआई बैंक को पिछले मार्च के दौरान 58.9 करोड़ का आर्थिक दंड लगा दिया था। बैंक पर एचएमटी (हेल्ड टू मैच्युरिटी) गाइडलाईन को तोड़ने का आरोप लगाया गया था। हालांकि इस बीच बैंक प्रबंधन बोर्ड की तरफ से चंदा कोचर को वीडियोकॉन लोन मामले में क्लीनचिट दी जा रही थी।