सात करोड़ की बार्ज खरीदकर भूल गए ‘सरकार’

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टिहरी
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टिहरी, आर्थिक मोर्चे पर संघर्ष कर रहे उत्तराखंड जैसे राज्य में पैसे की बर्बादी का इससे बड़ा नमूना और क्या होगा कि सात करोड़ की लागत से तैयार कराई गई बार्ज बोट (माल ढुलाई) में छेद हो गया है, यह बोट अब चलने लायक नहीं रह गई है। दो साल पहले सिर्फ उद्घाटन वाले दिन ही बार्ज झील में तैरी। इसके बाद यह खड़ी हुई तो कभी नहीं चल पाई। यह अलग बात है कि अफसरों के लिए यह मसला गंभीर नहीं है। उनकी नजर में बोट थोड़ी खराब है, जिसकी मरम्मत के बाद संचालन होने लगेगा, लेकिन दो साल में बार्ज क्यों नहीं चली। इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

दरअसल, टिहरी झील बनने के बाद प्रतापनगर ब्लाक के सत्तर से ज्यादा गांवों की करीब डेढ़ लाख आबादी अलग-थलग पड़ गई। जिला मुख्यालय तक पहुंचने के लिए यहां के लोगों को 120 किलोमीटर की दूरी अतिरिक्त तय करनी पड़ती है। इसमें करीब चार घंटे लग जाते हैं। जबकि झील को पार कर यह दूरी सिर्फ 50 किलोमीटर रह जाती है। ऐसे में माल ढुलाई के लिए पर्यटन विभाग ने इस बार्ज को तैयार किया। 28 अक्टूबर 2015 को भव्य समारोह कर इसका उद्घाटन किया गया। उस दिन बार्ज का संचालन किया गया। इसके बाद कभी यह नौबत नहीं आई। झील के जलस्तर में उतार-चढ़ाव सामान्य प्रक्रिया है। जब पानी कम हो जाता है तो बार्ज नीचे डूबी चट्टान से टकरा जाती है। यही वजह है कि एक जगह खड़े रहने से यह क्षतिग्रस्त हो गई। छेद होने से इसमें पानी का रिसाव भी होता है। जिसे बार-बार उलीचना पड़ता है।

बार्ज तो खरीदा, पर नहीं बनाए रास्ते 
स्थानीय लोगों का कहना है कि माल ढुलाई के लिए इलाके में सड़कों की भी जरूरत है। दरअसल बार्ज से सामान को उस पार उतारने के बाद उसे ले जाना किसी चुनौती से कम नहीं है। बार्ज तैयार कराने से पूर्व लिंक रोड बनाई जानी चाहिए थीं। दूसरी ओर बोट संचालन से जुड़े और कोटी कॉलोनी व्यापार मंडल के अध्यक्ष कुलदीप पंवार कहते हैं कि, “यदि बोट संचालन की जिम्मेदारी स्थानीय लोगों को दी जाती तो स्थिति कुछ और होती, यह तो सरासर अफसरों की लापरवाही है।” मामले में जिला पर्यटन अधिकारी टिहरी गढ़वाल सोबत सिंह का कहना है कि, “झील में खड़े रहने के कारण बार्ज बोट थोड़ा खराब हुई है, जल्द ही मरम्मत कराई जाएगी और इसके बाद संचालन किया जा सकेगा।”