चम्पावत, कोरोना वायरस से बचाव एवं रोकथाम के मद्देनजर जारी लाॅकडाउन की वजह से इस बार पूर्णागिरि मेला एक सप्ताह भी नहीं चल सका। इससे पूर्णागिरि धाम के पुजारियों के समक्ष एक तरह से रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। लाॅक डाउन का सदुपयोग उन्होंने पलायन से वीरान हो चुके अपने पुश्तैनी खर्राटाक गांव की बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने में किया। अब पुजारियों की मेहनत रंग लाई है। कल तक वीरान और बंजर पड़ी भूमि अब फसल बुआई के लिए पूरी तरह तैयार है।
पूर्णागिरि मंदिर के पुजारियों की सालभर की आजीविका सिर्फ मेले पर ही निर्भर रहती है। मां पूर्णागिरि धाम में हर साल होली के अगले दिन से तीन माह का विशाल मेला होता है। इसमें देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालुओं के साथ ही नेपाल से भी बड़ी संख्या में देवी भक्त मां के दर्शन को पहुंचते हैं। धाम के पुजारियों की आजीविका भी इसी मेले पर निर्भर रहती है। पूजा-अर्चना और दुकानों से होने वाली कमाई से ही पुजारी सालभर परिवार का पालन-पोषण करते हैं। इस बार कोरोना की वैश्विक महामारी से सात दिन बाद 18 मार्च को ही मेला स्थगित कर दिया गया था। ऐसे में पुजारी आजीविका को लेकर चिंतित तो हुए लेकिन हिम्मत नहीं हारी।
लॉक डाउन में उन्होंने टनकपुर से करीब 35 किमी दूर सालों से वीरान अपने पुश्तैनी गांव खर्राटाक का रुख किया और बंजर पड़ी करीब 250 नाली भूमि को फावड़ा चलाकर उपजाऊ बना दिया। इस पहल के मुखिया मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष किशन तिवारी ने बताया कि अब गांव की भूमि में बुआई की तैयारी है। उन्होंने बताया कि वैसे तो गांव को आबाद करने की योजना पहले से चल रही थी लेकिन लॉक डाउन में कोई काम नहीं बचा तो उनका ध्यान पूरी तरह गांव को आबाद करने में लगा रहा।