भिखारी सिंडिकेट की देहरादून में दस्तक, नहीं खुल रही दून प्रशासन की नींद

0
988

देहरादून। प्रदेश में भिखारियों की दस्तक से सुरक्षा पर सवाल खड़े होने लगे हैं। प्रदेश के विशेषकर राजधानी के नालों खालों में बांग्लादेशी अल्पसंख्यकों की घुसपैठ भी एक कारण है। ठीक इसी प्रकार भिखारियों की नई-नई खेप आकर इस सुरक्षा के खतरे को और गंभीर बना रही है। इनमें से अधिकांश भिखारी हिन्दू नाम वाले हैं, लेकिन उनकी बोलचाल, भाषा और स्टाइल यह बताने के लिए काफी है कि उनमें से अधिकांश लोग हिन्दू समाज के नहीं हैं। लेकिन अपना नाम और पिता का नाम हिन्दू ही बताते हैं।
दुर्भाग्य तो यह है कि कोई 15 दिन से आया है तो कोई 20 दिन से और कोई दो महीने से, लेकिन सबके समाज कल्याण विभाग के परिचय पत्र बने हुए हैं। यह इस बात का संकेत है कि इन भिखारियों और असामाजिक तत्वों की पैठ शासन तंत्र में भरपूर है। अधिवक्ता अमित तोमर ने बताया कि राजपुर रोड स्थित ओरिएंट चौक की लाल बत्ती पर मेरी गाड़ी खड़ी थी। चार-पांच भिखारियों ने गाड़ी खटखटाई। सभी हष्ट-पुष्ट थे। ऐसा कोई कारण प्रतीत नहीं होता था कि भिक्षावृत्ति ही इनके लिए जीवन का एक मात्र विकल्प हो। इस गिरोह को मैंने पहले कभी नहीं देखा। लगता है कि भिखारी माफिया ने नई खेप देहरादून में उतार दी है। देहरादून के व्यस्तम चौराहे पर इन भिखारियों के कारण जाम की स्थिति बनी रहती है। इनके साथ तीन बच्चे भी थे जो शायद 7-8 साल के होंगे। यह लोग सुनियोजित तरीके से उगाही में जुटे थे और मात्र 10 कदम की दूरी पर तैनात पुलिसकर्मी अपने केबिन में बैठा था। लाल बत्ती खुली तो मैंने गाड़ी थाम ली और पार्किंग में लगाकर पुलिस केबिन में पहुंचा और विरोध दर्ज करवाया।
तोमर बताते हैं, इसके बावजूद पुलिस की नींद नही खुली तो 100 नंबर पर फोन किया। तब जाकर चीता पुलिस का एक सिपाही आया और इन चार भिखारियों को पुलिस चौकी ले जाया गया। इस गफलत में वे तीन बच्चे गायब हो गए। जब इनके पहचान पत्र जांचे तो पता चला कि इनमे से एक दरभंगा जिला बिहार से है जो मात्र 2 महीने पहले ही देहरादून लाया गया। इसी भिखारी के पास से उत्तराखंड समाज कल्याण विभाग का पहचान पत्र भी मिला जो अचंभित करता है। किस प्रकार शासन-प्रशासन में भिखारी सिंडिकेट की पैठ है, यह उसका जीवंत उदाहरण है।
अधिवक्ता तोमर ने भिखारियों के इस मामले को लेकर लिखित शिकायत चौकी प्रभारी धारा कुलदीप पन्त को दी है। तोमर की माने तो इन भिखारियों में अधिकांश हृष्ट-पुष्ट हैं जो काम करके खा-पहन सकते हैं, लेकिन इनका पूरा गैंग केवल भीख मांगकर गुजारा कर रहा है। ये लोग आपाराधिक वारदात से जुड़े होंगे, इस बात इनकार नहीं किया जा सकता।
सीओ सिटी चन्द्र मोहन सिंह का इस संबंध में कहना है कि अब तक 70-80 भिखारी रोशनाबाद हरिद्वार भिक्षुक गृह भेजे जा चुके हैं। हर माह 10-12 भिखारी रोशनाबाद भेजे जाते हैं। भिक्षुक गृह की भी कुछ शर्तें हैं जिनमें बुजुर्ग न हो, बच्चा न हो, शेष भिखारियों को जेल भेज दिया जाता है। हर माह इस तरह का अभियान चलाया जाता है, लेकिन पुलिस कई बार कानून व्यवस्था तथा अन्य मामलों में व्यस्त रहती हैं, जिसके कारण भिखारियों पर पूरा ध्यान नहीं दिया जा सकता। फिर भी हमारा प्रयास है कि इन पर कड़ी निगाह रखी जाए। जांच हो और कार्रवाई की जाए।