पहाड़ों की सादगी मुझे अपनी ओर खींचती है: भूपेंद्र कैंथोला

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न्यूजपोस्ट की इस खास सिरीज़ में हम आपको उन लोगों से रूबरू करा रहे हैं जिन्होंने अपनी मेहनत, हुनर और लगन से उत्तराखंड को राष्ट्रीय औऱ अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर पहचान दिलाई है।ये लोग उम्र और समाज के हर वर्ग से हैं और इनकी कहानियां न सिर्फ आपको प्रेरणा देंगी बल्कि आपको पहाड़ी होने पर गौरान्वित भी करेंगी।

कुछ समय पहले प्रतिष्ठित फिल्म और टेलीवीजन इन्सटीट्यूट आॅफ इंडिया (एफटीआईआई) देश भर में चर्चा का मुद्दा बना हुआ था। कारण था केंद्र सरकार द्वारा एक्टर गजेंद्र चौहान की एफटीआईआई के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति। इस नियुक्ति का छात्रों ने पुरजोर विरोध किया। लेकिन बहुत कम लोग शायद जानते होंगे कि एफटीआईआई के वर्तमान निदेशक भूपेंद्र कैंथोला पौड़ी जिले के पाबौ ब्लाॅक के हैं। भूपेंद्र ने 3 मई 2016 को इस संस्थान के निदेशक का कार्यभार संभाला।

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15 मार्च 1966 को हावङा में जन्मे भूपेंद्र ने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट जाॅन बैपटिस्ट स्कूल, थाने से पूरी की और इसके बाद मुंबई युनिवर्सिटी से राजनीति शास्त्र और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में गोल्ड मेडल हासिल किया। अपने परिवार और दोस्तों के बीच भूपी के नाम से जाने वाले भूपेंद्र के पिता स्वर्गीय सर्वेशवर दत्त कैंथोला और माता कमला देवी हैं।

1989 में इंडियन इन्फोर्मेशन सर्विस पास करने के बाद से भूपेंद्र ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वो कहते हैं कि ” पुणे अाने से पहले मैने दूरदर्शन मुख्यालय दिल्ली में एडिश्नल डायरेक्टर जेनरल के पद पर काम किया।” इसके अलावा भूपेंद्र निदेशक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, और लोकसभा टीवी के एक्सीक्यूटिव डायरेक्टर के पद पर काम कर चुके हैं। भूपेंद्र के करीब 30 साल लंबे करियर के ये कुछ मील के पत्थर रहे हैं।

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भूपेंद्र को काम के चलते खाली समय मिलना मुश्किल ही रहता है लेकिन फुर्सत के कुछ पल मिलते ही, आप उन्हें पहाड़ों की हसीन वादियों में मिल सकते हैं। उन्हें पहाड़ों में घूमना, ट्रैकिंग, योगा या गंगा के किनारे सैर करना बहुत पसंद है।वो कहते हैं कि “उत्तराखंड में ट्रैकिंग, घ्यान, योग, योगियों की जीवनिया पढ़ना और पुराने हिंदी गाने खास तौर पर हेंमत कुमार के गाने सुनने से उन्हें नई ऊर्जा मिलती है।”

कई सालों से भूपेंद्र हर साल अगस्त में अपने गांव जाते हैं और अपने पिता के नाम पर राजकीय इंटर काॅलेज में कक्षा 6-12 तक में अवव्ल आने वाली छात्राओं को स्काॅलरशिप देते हैं। वो कहते हैं कि “इस स्कूल में उनके पिता जी पढ़ें है और इस तरह वो अपनी मिट्टी का कर्ज उतारने की छोटी ही सही लेकिन कोशिश करते हैं।”

पहाड़ों के लिये भूपेंद्र के इस प्यार को देख कर आप उनके रिटायरमेंट प्लान का भी अंदाजा लगा सकते हैं। वो कहते हैं ” मैं अपने गांव में एक शांत और सादगी भरी जिंदगी जीना चाहता हूं। पहाड़ों में स्कूल के बच्चों को पढ़ाना चाहता हूं और यहीं जीवन के अाखिरी दिन गुजारने की तमन्ना है”।