धूमधाम से मानया गया भाई-बहन के प्यार को समर्पित भिटौली पर्व

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देहरादून,  सामाजिक संस्था हिल्स डेवलपमेंट मिशन ने उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में मनाए जाने वाले भिटौली कार्यक्रम का आयोजन किया।  प्रेस क्लब में आयोजित कार्यक्रम में महिलाओं ने परंपरागत पहाड़ी वेशभूषा धारण कर पहाड़ी व्यंजनों एवं पकवानों के साथ मनोरंजन कार्यक्रम से भिटौली कार्यक्रम मनाया।

इस अवसर पर रंगारंग कार्यक्रम में लोक कलाकार सौरव मैठाणी एवं उनके साथी कलाकारों ने गायन एवं नृत्य की सुन्दर प्रस्तुति दी। संस्था के अध्यक्ष रघुबीर विष्ट ने कहा कि, “आज के वैश्विक युग में हिल्स डेवलपमेंट मिशन उत्तराखंड के विलुप्त होते जा रहे लोक पर्व भिटौली त्यौहार को देहरादून में धूमधाम से मना कर इस पर्व की प्रासंगिकता को बनाए रखने का प्रयास कर रहा है।”

उन्होंने भिटौली पर्व के बारे में बताते हुए कहा कि यह पर्व मुख्यता भेंट मुलाकात के रूप में मानाया जाता है। प्रत्येक विवाहित लड़की के मायके वाले (भाई माता-पिता या अन्य परिजन) चैत के महीने में उसके ससुराल जाकर विवाहिता से मुलाकात करते हैं। इस अवसर पर वह अपनी लड़की के लिए घर में बने व्यंजन जैसे खजूर (आटे दूध घी चीनी का मिश्रण), खीर मिठाई, फल तथा वस्त्र आदि लेकर जाते हैं। शादी के बाद की पहली भिटौली कन्या को वैशाख के महीने में दी जाती है और उसके पश्चात हर वर्ष चैत्र मास में दी जाती है। यह एक अत्यंत ही भावनात्मक परंपरा है। लड़की चाहे कितनी ही संपन्न परिवार में ब्याही गई हो उसे अपने मायके से आने वाली भिटौली का हर वर्ष बेसब्री से इंतजार रहता है।

प्रथा इसलिए भी शुरू हुई कि पहले आवागमन के सुगम साधन उपलब्ध नहीं थे और ना ही लड़की की मायके जाने की छूट थी। लड़की किसी भी निकट संबंधी के शादी ब्याह या दुख बीमारी में ही अपने ससुराल से मायके जा पाती थी। इस प्रकार अपनी शादीशुदा लड़की से कम से कम साल में एक बार मिले और उस को भेंट देने के प्रयोजन से ही यह त्यौहार बनाया गया। भाई बहन के प्यार को समर्पित यह रिवाज उत्तराखंड के लोगों के द्वारा मनाया जाता है। विवाहित बहनों को चैत का महीना आते ही अपने मायके से आने वाली भिटौली की सौगात का इंतजार रहने लगता है। जिसे पूरे गांव में बांटा जाता है।