पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भाजपा व आरएसएस को सांप्रदायिकता और भीड़ के जरिये हत्या की घटनाओं पर घेरा। उन्होंने पीएम के साम्प्रदायिकता भारत छोड़ो के नारे को हास्यापद बताया। उन्होंने कहा कि यह जब तक तथाकथित गौ रक्षक व हिंदु युवा वाहिनी जैसे संगठन धर्म आधारित घृणा के प्रचार के लिए भीड़ हत्या को माध्यम बना रहे हैं तब तक प्रधानमंत्री का यह कथन मजाक मात्र है। इसके लिए सबसे पहले भाजपा और संघ परिवार को अपने साम्प्रदायिक ब्रांडों को बंद करना चाहिए।
मंगलवार को कांग्रेस भवन में पत्रकारों से बात करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साम्प्रदायिकता भारत छोड़ो कथन पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने साम्प्रदायिकता का यह जिन्न खड़ा किया है। उसे बोतलों में बंद करना उन्हीं का दायित्व है। हरीश रावत ने आरोप लगाते हुए कहा कि छात्रों को दीनदयाल उपाध्याय के विचारों का ज्ञान कराने के नाम पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम व आधुनिक भारत के निर्माण के इतिहास को तोड़-मरोड़ कर दिखाने का काम किया गया है। जिसकी वह कड़ी निंदा करते हैं और वह इसका जमकर विरोध करेंगे। उन्होंने कहा कि भाजपा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी व जवाहर लाल नेहरू को महापुरुष नहीं मानती है, जबकि संघ सांप्रदायिकता आधारित सोच के ध्वज वाहकों को स्वामी विवेकानंद के समकक्ष रखा जा रहा है।
प्रदेश भाजपा को घेरते हुए उन्होंने कहा कि देहरादून में पिछले दिनों हुए एक कार्यक्रम को उन्होंने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथू राम गौड़से को सर्मर्पित बताया है। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में भारत-चीन सीमा विवाद, कश्मीर, लगातार हो रही किसानों की आत्महत्याएं और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं हुई। इस संबंध में ऐसा कोई प्रस्ताव भी सामने नहीं आया है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि वह भाजपा के हुए इस सम्मेलन में बेबस दिखे हैं। जो कि काम करने की स्वतंत्रता मांग रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने मुख्यमंत्री द्वारा किसानों की आत्महत्याओं को सुसाइड नोट के साथ जोड़ने के कथन को दुभाग्र्यपूर्ण व अमानवीय बताया है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार अब तक प्रदेश वासियों की भावनओं पर खरी नहीं उतरी है। जब से त्रिवेंद्र सरकार बनी है तब से विकास कार्य ठप पड़ गए है। पूरे प्रदेश में निराशा का माहौल है।