देहरादून, प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी को लेकर भाजपा की उलझन सुलझ नहीं पा रही है। यही वजह है कि अध्यक्ष का मसला लंबा खिंचता चला जा रहा है। भाजपा इसलिए भी ठोक बजाकर निर्णय लेने के पक्ष में दिख रही है, क्योंकि 2022 का विधानसभा चुनाव भी उसकी नजर में है, जहां पर सरकार के कामकाज के प्रसार से लेकर एंटी इनकमबेंसी को रोकने के उपाय नए अध्यक्ष की नेतृत्व क्षमता पर काफी हद तक निर्भर रहेंगे।
मौजूदा अध्यक्ष सांसद अजय भट्ट का कार्यकाल एक साल पहले ही खत्म हो गया था, लेकिन उन्हें लोकसभा चुनाव की वजह से एक साल का एक्सटेंशन दिया गया था। एक्सटेंशन की समय सीमा भी दिसम्बर 2019 में खत्म हो गई है, लेकिन भाजपा के नए अध्यक्ष का इंतजार खत्म नहीं हुआ है। अध्यक्ष पद के दावेदारों में भट्ट का नाम भी उछल रहा है, लेकिन पार्टी के सूत्रों के अनुसार इस बात की बहुत ज्यादा संभावना नहीं है कि किसी सांसद को अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जाए। भाजपा पूर्व में ऐसी स्थिति से बचती आई है और ऐसे अध्यक्ष की नियुक्ति पर विश्वास करती आई है, जो सिर्फ उत्तराखंड में संगठन की मजबूती पर ही केंद्रित हो।
भाजपा में कैलाश पंत, बंशीधर भगत, पुष्कर सिंह धामी से लेकर धन सिंह रावत तक के नाम अध्यक्ष पद के लिए उछल रहे हैं, लेकिन क्या इन्हीं नामों में से कोई अध्यक्ष होगा या फिर किसी नए नेता की एंट्री हो सकती है, सबको लेकर कयासबाजी का दौर चल रहा है। वैसे, इतना तय माना जा रहा है कि संगठन के विभिन्न पदों पर नियुक्ति में मुख्यमंत्री की पसंद काोे खास तवज्जो दी जा रही है। दून महानगर अध्यक्ष पद पर सीताराम भट्ट की ताजपोशी इसका हालिया सबसे बड़ा उदाहरण है।
माना जा रहा है कि हाईकमान भी उसे ही अध्यक्ष बनाने के पक्ष में है, जो सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ बेहतर तालमेल बनाकर चल सके। जिस तरह से 2022 की चुनावी चुनौती को हाईकमान वर्तमान में महसूस कर रहा है, उसमें तालमेल में जरा सी कमी के लिए वह गुंजाइश नहीं रहने देना चाहता है।