चीन से लगे सीमांत गांवों में अब सिर्फ 1200 लोग

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    उत्तराखंड

    चीन की हठ धर्मिता के कारण एक बार फिर से सुर्खियों में आये बड़ा होती की नीती मलारी घाटी में सीमावर्ती गांवों की एक त्रासदी यह भी है कि इन नौ गांवों में 1200 के लगभग लोग ही ग्रीष्मकाल में प्रवास के लिए जाते हैं। नई पीढ़ी उत्सव विशेष में जब आती है तब इस घाटी में खूब रौनक और मानव संसाधन जुट जाते हैं। अन्यथा बुढ़े- बुजुर्ग 1200 लोग ही इन गांव में रह जाते हैं।

    नीती मलारी घाटी अपनी खूबसूरती और परिश्रम की घाटी के रूप में भी जानी जाती है। छह माह में यहां पर भोटिया जनजाति के लोग परंपरागत रूप से रहते है और शीतकाल में नीचले गांवों में आ जाते है। नीती, मलारी, गमशाली, फरकिया, कैलाशपुर, कौसा, मेहर गांव, द्रोणागिरी, बांपा आदि गांवों में परंपरा के अनुसार छह माह निवास करने के लिए लोग आते है। इस दौरान वे पशुपालन और खेती व ऊन के कारोबार से जुड़े रहते हैं।

    यूं तो शासन-प्रशासन ने इन घाटियों के गांवों समेत कुछ सीमा चौकियों तक सड़क भी पहुंचा दी है। इसके बावजूद भी उस संख्या में युवा पीढ़ी इन गांवों में नहीं रहना चाहती जिसकी अपेक्षा की जाती है। उपजिलाधिकारी जोशीमठ योगेंद्र सिंह कहते है कि यह सच है कि युवा पीढ़ी अब नौकरी पर विशेष रूप से ध्यान लगाना चाहती है मगर ऐसा नहीं कि वह इन गांवों में आती ही नहीं। अवसर व उत्सव विशेष पर आती है।

    पूर्व पर्यटन मंत्री केदार सिंह मंत्री जो इसी गांव से हैं, उनका कहना है कि यदि सरकार चाहे तो पर्यटन नीति के तहत यहां पर पर्यटन को बढ़ावा दे सकती है।