नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार देश में गुणवत्ता युक्त चिकित्सा सेवाओं की मांग पूरी करने के लिए सार्वजनिक बुनियादी ढांचा अपर्याप्त होने के कारण निजी स्वास्थ्य क्षेत्र का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है।
इस क्षेत्र में अप्रैल 2000 से 2016 के बीच कुल 23169.91 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आ चुका है लेकिन इनसे आयकर कानून के प्रावधानों का अनुपालन कराने और उसके तहत की जाने वाली कर वसूली की प्रणाली में खामियां होने के कारण कमाई के हिसाब से आयकर वसूल नहीं किया जा सका।
उल्लेखनीय है कि भारत दुनिया के बड़े दवा बाजारों में एक है। दुनिया के अन्य देशों में इस तरह के नियम आम हैं जो दवा कंपनियां इनका पालन भी करती हैं, लेकिन यह भारत में लागू नहीं है। यही वजह है कि दवा बिक्री के लिए अनैतिक तिकड़मों पर कुठाराघात करने की मांग उठती रहती है। अभी दवा कंपनियों के लिए जो कानून मौजूद हैं, उन्हें एक्सपर्ट्स निष्प्रभावी मानते हैं।
इससे पहले समाजवादी पार्टी के नेता और राज्यसभा सांसद नरेंद्र अग्रवाल ने भी सदन में ये मुद्दा उठाते हुए कहा था कि, ‘बजट का सिर्फ दो परसेंट हेल्थ पर खर्च हो रहा है, जबकि विश्व के और देश स्वास्थ्य बजट का सारा खर्च वहन करते हैं। आप किसी नर्सिंग होम में जाइए, किसी डॉक्टर को दिखाइए तो वह इतनी जांच लिख देगा कि आपका घर बिकने भर का पैसा जांच में चला जाएगा। इस देश में नामी हॉस्पिटल हैं| आप वहां चले जाएं तो न्यूनतम एक लाख बिल बनेगा।‘